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पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए/ ग़ज़ल

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए

जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए

 

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए

 

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

 

“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया  

गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 7, 2013 at 11:00am

यथा संशोधित

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 10:27am

आदरणीय सम्पादक महोदय जी सादर प्रणाम

आपसे निवेदन है की ग़ज़ल को इस प्रकार से सुधार करने की कृपा करें

सादर प्राथी

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए

जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए

 

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए

 

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए


 

“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया  

गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए

 

संदीप पटेल “दीप”

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 10:24am

आदरणीय नीलेश जी, आदरणीय शिज्जू जी आप की इस्लाह सर आँखों ये स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये

सादर

मतला का ऐब तो मैंने सुधार कर लिया था

किन्तु यही ऐब इक अशआर में भी है जहाँ फिर हम आ रहा है मेरी के साथ वहाँ

मैंने इस तरह सुधार किया है

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

यूँ हमारी हर ग़ज़ल से खुशबू अब उड़ने लगी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 10:04am

आदरणीय गिरिराज सर जी, आदरणीय उमेश जी, आदरणीया कुंती जी, आदरणीय राजेश कुमारी जी ..आदरणीय अरुण सर जी आप सभी का हौसलाफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 7, 2013 at 9:24am

ग़ज़ल अच्छी लगी आदरणीय संदीप जी खासतौर पे ये शेर पसंद आया
//तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए //


शेष आदरणीय निलेश जी ने कह दिया है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 6, 2013 at 10:35pm

बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आप ने .... बधाई ...
मतले में शतुर्गुरबा ऐब नुमाया है ... मेरे को अपने करने से राह आसान हो जाएगी 
तुम जियो खुश... को यदि तुम रहो खुश किया जाय तो कैसा रहे ???
चूंकि ज़ाफरान यानी केसर नशीला नहीं होता अत: ..

मेरी गजलों का नशा यूँ सबके सर चढ़ने लगा

देखते ही देखते हम जाफरानी हो गए... को ...मेरी गजलों की महक किया जय तो बात अधिक सटीक रहेगी ..,.. क्षमा प्रार्थी हूँ जो इतना कुछ लिख गया ... लेकिन आप से बहुत उम्मीद रखता हूँ इसलिए बाध्य हुआ हूँ .... वाह वाह कर के निकल जाना आसान है .... लेकिन मुझे सही नहीं लगा ...अत: कह दिया ... पुन: क्षमा प्रार्थी हूँ ...
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2013 at 9:32pm

बहुत खूब जी प्रिय संदीप जी.........

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

मेरी गजलों का नशा यूँ सबके सर चढ़ने लगा

देखते ही देखते हम जाफरानी हो गए

 

इन दो अश'आरों ने तो गज़ब ही कर दिया, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2013 at 7:21pm

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए------वाह्ह्ह बहुत बढ़िया शेर ,वैसे पूरी ग़ज़ल ही लाजबाब है दिल से बधाई 

 

Comment by coontee mukerji on December 6, 2013 at 6:21pm

मेरी गजलों का नशा यूँ सबके सर चढ़ने लगा

देखते ही देखते हम जाफरानी हो गए..............बहुत सुंदर.

Comment by umesh katara on December 6, 2013 at 5:27pm

वाह वाह आदरणीय अच्छी मनमोहक गज़ल के लिये बधायी है वाह्ह्ह्ह्ह्

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