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किसी सोच में कभी डूब के जो लिखा न हो औ कहा न हो

वो ग़ज़ल है क्या और वो गीत क्या किसी दिल को जिसने छुआ न हो

 

मेरी शाईरी में है जो निहाँ मेरे हर्फ़ में वो रवाँ रवाँ

मेरी है दुआ उसी रब से के कहूँ जब मैं कोई खफा न हो

 

ज़रा पूछिए किसी आदमी से छुआ है कैसे ये आसमाँ

क्या सफ़र में फर्श से अर्श के कोई है वो जो कि गिरा न हो

 

कहे माँ कहीं मिलें गर्दिशें तो खुदा दिखाता है रास्ता

इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खडा न हो

 

हुआ “दीप” तू भी तो मतलबी बिना काम के तू भी कब मिला

कोई बात ऐसी करी नहीं छुपा जिसमें कोई नफा न हो

संदीप पटेल "दीप"

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 10:52am

आदरणीया गीतिका दीदी आपका ह्रदय से धन्यवाद स्नेह यूँ ही  बनाये रखिये सादर

Comment by वेदिका on December 1, 2013 at 10:49am

मेरी शाईरी में है जो निहाँ मेरे हर्फ़ में वो रवाँ रवाँ

मेरी है दुआ उसी रब से के कहूँ जब मैं कोई खफा न हो ......बेहतरीन शेअर हुआ है! 

बेहतरीन गज़ल पर हार्दिक बधाई प्रिय संदीप भैया!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 10:41am

आदरणीय गिरिराज सर जी सादर आभार आपका सराहना हेतु

औ को गिराने के लिए गुरुजन और अग्रजों के विचारों का इंतज़ार है वो जैसा कहेंगे मान्य होगा

सादर

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 10:40am

आदरणीय जितेन्द्र जी सादर धन्यवाद आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 10:39am

आदरणीय डॉ गोपाल सर आपका ह्रदय से आभार

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 1, 2013 at 7:19am

आदरनीय सन्दीप भाई , सुन्दर तरही गज़ल कही है , आपको बधाई ,

आदरणीय शिज्जू भाई की बात मुझे भी सही लग रही है,  औ की मात्रा गिराना शायद सही नही है !!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 1, 2013 at 1:34am

ज़रा पूछिए किसी आदमी से छुआ है कैसे ये आसमाँ

क्या सफ़र में फर्श से अर्श के कोई है वो जो कि गिरा न हो............वाह! बहुत बेहतरीन शेर

बहुत बढ़िया गजल, दिली दाद कुबूल करें आदरणीय संदीप जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2013 at 11:08pm

दीप जी

ग़ज़ल की भाव सम्पदा मुझे अच्छी लगी

शिल्प के बारे में गुनीजन जाने i

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2013 at 8:21pm

आदरणीय शिज्जू जी सादर

आपने ग़ज़ल को सराहा उसके लिए आभार आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

मुझे लगा के गिरा सकते हैं सो गिरा के कह लिया और ऐसा करने में मुझे कहीं भी अटकाव की स्थिति भी नहीं लगी

बाकी तो अग्रज और गुरजन ही इस पर कुछ विशेष राय दे सकते हैं जिससे कुछ और ज्ञान अर्जित किया जा सके

सादर धन्यवाद आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 30, 2013 at 8:15pm

//ज़रा पूछिए किसी आदमी से छुआ है कैसे ये आसमाँ

क्या सफ़र में फर्श से अर्श के कोई है वो जो कि गिरा न हो// इस बेहतरीन शेर के लिये दाद कुबूल करें

आदरणीय संदीप जी क्यूँकि और को गिरा के हम पढ़ रहें हैं उसके बाद को फिर गिराना क्या सही होगा???

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