जम्हूरियत के बुर्ज पर
बैठा सियासत का गिद्ध
फेरता है चारो ओर
पैनी निगाह
जो है अप्रेरित
भूख से,
वह ढूंढता नहीं है
लाश,
भिड़ाता है तरकीब
लाश बिछाने की..
सत्ता की अंध महत्वकांक्षा में
ये निगाह रहती है
चिर अतृप्त.
चुनावों के मौसम में बढ़ जाती
आवाजाही गिद्धों की .
.......... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीरज जी ..बेहतरीन तरीके से करारी बात ..सादर
आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब ..
आदरणीय शिज्जू साहब आभार ..
जीतेन्द्र गीत साहब हार्दिक आभार ..
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब .. आभार आपका ..
आदरणीय नीरज 'नीर' जी इस खूबसूरत रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई
सच! सियासती गिद्धों के स्वार्थ से सिर्फ लाशें बिछकर रह जाती है, सार्थक रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी
नीरज जी
बड़ी गिद्ध सिद्ध कविता है
गिद्ध तो केवल लाश खाते है
उनका भोजन है
पर ये सियासती गिद्ध
लाश बिछाते है वोटो के लिए --------
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