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टूटी चूड़ियाँ

बह गया सिन्दूर

साथ ही टूटा

अनवरत

यंत्रणा का सिलसिला

बह गया फूटकर

रिश्तों का एक घाव

पिलपिला

अब चाँद के संग नहीं आएगा

लाल आँखें लिए

भय का महिषासुर

कभी कभी अच्छा होता है

असर

जहरीली शराब  का ..

... नीरज कुमार ‘नीर’

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on November 20, 2013 at 7:47pm

आदरणीया  गीतिका जी रचना को सराहकर आपने मेरा उत्साह बढाया है .. हार्दिक आभार ..

Comment by Neeraj Neer on November 20, 2013 at 7:46pm

आभार आदरणीय अरुण श्रीवास्तव जी ..

Comment by Neeraj Neer on November 20, 2013 at 7:41pm

आदरणीय ई. गणेश जी "बागी" साहब आह्लादित हूँ आपकी टिप्पणी पढ़कर , यह मेरे लिए किसी मेडल के समान है . हार्दिक आभार आपका आदरणीय ..

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 3:33pm

सादर नमन एक आदर्श रचना को!

Comment by Arun Sri on November 20, 2013 at 1:29pm

ओह ! इन चंद पंक्तियों ने पूरा अध्याय सामने रख दिया ! बहुत प्रभावशाली ढंग से लिखी गई कविता ! वाह !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 20, 2013 at 12:36pm

//

अब चाँद के संग नहीं आएगा

लाल आँखें लिए

भय का महिषासुर

कभी कभी अच्छा होता है

असर

जहरीली शराब  का ..//
आह ! क्या कहने भाई, एक उचाई से लाकर सीधे जमीं पर दे मारा है आपने, यह होती है अतुकांत, सच में मन गदगद है, रोज नहीं सृजित होतीं ऐसी कवितायेँ | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें |

Comment by Neeraj Neer on November 20, 2013 at 8:56am

प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया  डॉ प्राची सिंह जी , 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 8:05pm

वाह! बहुत सुन्दर कविता..

इस सशक्त प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आ० नीरज जी 

Comment by Neeraj Neer on November 18, 2013 at 7:27pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी  आभार आपका ..

Comment by Neeraj Neer on November 18, 2013 at 7:27pm

आभार भाई अरुण जी ..

कृपया ध्यान दे...

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