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ग़ज़ल : क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

---------

याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं

क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

 

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे

और हम हैं घड़ी न होते हैं

 

प्रेम के वो न टूटते धागे

जिनके रेशे महीन होते हैं

 

वन में उगने से, वन में रहने से

पेड़ खुद जंगली न होते हैं

 

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ

रात सपने हसीन होते हैं

 

खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे

यूँ नयन शर्बती न होते हैं

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 2:21pm

वन में उगने से, वन में रहने से

पेड़ खुद जंगली न होते हैं ,,,,, क्या कहन है! 

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे

और हम हैं घड़ी न होते हैं,,,,, लाजवाब! 

बहुत शिद्दत से कही गज़ल पर ढेरों दाद लीजिये!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 1:02pm

वाह वाह क्या बात है

प्रेम के धागे .............तजुर्बा भर दिया है आपने आदरणीय

सपने हसीं ..........प्रेमियों का हालेदिल बयान हो गया

और मतअले के लिए तो दाद पे दाद क़ुबूल फरमाइए सर जी

ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब

Comment by AVINASH S BAGDE on November 19, 2013 at 10:41am

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ

रात सपने हसीन होते हैं...mubarak ho ..धर्मेन्द्र कुमार सिंह bhai.

Comment by vijay nikore on November 19, 2013 at 10:24am

इस सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।

 

Comment by नादिर ख़ान on November 18, 2013 at 10:03pm

प्रेम के वो न टूटते धागे

जिनके रेशे महीन होते हैं.......

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ

रात सपने हसीन होते हैं.............

वाह वाह क्या बात कही है, आदरणीय धर्मेंद्र कुमार जी ..

सुंदर रचना के लिए बधाई....

Comment by MAHIMA SHREE on November 18, 2013 at 9:19pm

याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं

क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं.....

बेहद उम्दा गज़ल... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. धर्मेन्द्र जी

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:23pm

बधाई आपको एक सुन्दर ग़ज़ल से रु ब रु कराने के लिए 

Comment by Abhinav Arun on November 18, 2013 at 5:26pm

अद्भुत चमत्कृत करती शैली की ग़ज़ल आ. धर्मेन्द्र जी बहुत बधाई कमाल कमाल क़माल !!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 18, 2013 at 5:10pm

सुंदर ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 18, 2013 at 4:42pm

//याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं

क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं// बहुत बढ़िया बेहतरीन शे'र

आदरणीय धर्मेन्द्र जी इस ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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