For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

1212 1122 1212 22

 

सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ

 

ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर

गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ

 

न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे

तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ

 

चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह

वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ

 

ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा

इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा कुछ

 

निहाँ =छिपा हुआ, खिरामां =गतिमान, आतिशबजाँ =जिसके अंदर आग हो, शादमाँ =हर्षित

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1127

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 5:02pm

आदरणीय सुशील जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 12:21pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति है आ0 शिज्जू भाई जी..... बहुत बहुत बधाई...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 9:32pm

Respected Mr Gopal sir Thanks a lot for compliment 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 4:36pm

WONDERFULL. congrats.YOU REALLY PUT YOUR SOUL HERE.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:22am

आदरणीय वीनसजी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:21am

आदरणीय गिरिराज जी हौसलाअफ्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:20am

भाई नीरज जी नवाजिशों के लिये आपका शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on November 7, 2013 at 12:49am

बहुत खूब भाई जी क्या कहने

शानदार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2013 at 8:51pm

आदरणीय शिज्जू भाई , बहुत शानदार , लाजवाब और मुकम्मल गज़ल कही है !!!!! हर शे र क़ाबिले दाद है !!!!! आपको बहुत बधाई !!!!!

Comment by Neeraj Nishchal on November 6, 2013 at 6:54pm

आदरणीय सिज्जू भाई आप कि ग़ज़ल को पढ़ कर महसूस होने लगा है
कि ग़ज़ल क्या होती है सोच में पड़ गया कैसे सोच पाते हैं आप ऐसा

सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ

ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर

गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ

न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे

तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ

चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह

वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ

ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला “तनहा”

इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा कुछ

हर एक शेर हर एक शेर से बढ़कर है
लाजवाब बहुत बहुत बधाई ............................................................................................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service