For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दरुवा की दीवाली (हास्य व्यंग्य कविता) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

पीकर आया  दीवाली में,  बांह पकड़  बीबी से बोला।                              

तुम मधुमय अधरों वाली, और मैं प्यासा दरुवा भोला॥  ......   दरुवा = शराबी                                                                             

 

बीबी बोली, शर्म करो , दीवाली में  पीकर आये हो।      .......  पत्नी                                                                         

दिया फटाके मिठाई नहीं,  खाली झोला ले आये हो॥                                     

 

जिस पल तेरी याद आई,  मैं दारू छोड़कर आया हूँ।       .....  पति                                   

तुम क्या जानो इस हालत में,  कैसे घर तक आया हूँ¡॥                                    

 

शराब जैसी बुरी चीज़ पर, आधी कमाई लुटाते हो।        .....  पत्नी                                    

सारा मोहल्ला देख रहा, क्यों अपनी हँसी उड़ाते हो ॥                                       

 

पीना कोई पाप  नहीं है, खुद सरकार पिलाती है।         .....  पति                                                                    

शराब के ठेकेदारों से वह, अरबों रुपय कमाती है॥                                                           

 

राजस्व बढ़ेगा  पीने से,  यह देश हमीं से पलता है।  ......   राजस्व = सरकारी आय                      

स्कूल ,कॉलेज, अस्पताल, दारू के पैसों से चलता है॥                                                  

 

मैं तो चली अपने मायके,  दीवाली वहीं  मनाऊँगी।          .....  पत्नी                                                                            

जब छोड़ोगे तुम शराब, मैं वापस उस दिन आऊँगी ॥                                

 

इन भीगे पलकों की कसम,  मैं प्यार तुम्हीं से करता हूँ।      ..... पति                                                                            

आज के बाद पिऊँगा नहीं,  ये वादा तुम से करता हूँ॥                                     

 

शराब ने घर बर्बाद किया,  क्या जीवन ऐसे बितायेंगे।       .....  पत्नी                                                                       

पैसे नहीं कुछ  पास हमारे,  कैसे दीवाली  मनायेंगे॥                        

 

पड़ोसी  फटाके  फोड़ेंगे,  हम देख के ताली बजायेंगे।           ..... पति                                                                       

घर- घर जा के बधाई देंगे,  और प्रसाद पा जायेंगे॥                                        

 

मायके जाने की बात न करो,  साथ दीवाली  मनायेंगे।                            

दिया बाती और तेल नहीं,  हम प्यार के दीप जलायेंगे॥ 

****************************************************

 

-  अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी (छत्तीसगढ़)

 

( मौलिक एवं अप्रकाशित )   

Views: 3037

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 5:43am

हास्य व्यंग्य के साथ सार्थक संदेश देती इस रचना हेतु बधाई आ0 अखिलेश जी...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 5, 2013 at 1:48pm

आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामना ।

अजीत भाई हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए।  आपका सुझाव भी उचित है।

जितेन्द्र भाई हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए। 

अरुण भाई हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए।

आ. राजेश कुमारीजी हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए।

विजय भाई हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए।

रविकर भाई हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए।

राम् भाई हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए।

छोटे भाई गिरिराज हृदय से आभार हास्य व्यंग्य रचना को पसंद करने के लिए। 

Comment by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 9:33am

बहुत ही  सुन्दर हास्य  प्रस्तुति आदरणीय  आपको बहुत बहुत बधाई …सादर 

Comment by रविकर on November 4, 2013 at 6:25pm

वाह मजेदार प्रस्तुति-
दीप पर्व की शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by विजय मिश्र on November 4, 2013 at 4:39pm
खूब लिखी भाई ,बहुत सुंदर .बधाई अखिलेशजी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2013 at 4:49pm

दिवाली की आड़ में शराब जुआ आदि बुरी आदतों के लिए हास्य का पुट देते हुआ सार्थक व्यंग्य किया है बहुत बढ़िया रचना हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 3, 2013 at 2:46pm

सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते, सुन्दर व सरल संवाद के माध्यम से बढ़िया सन्देश देती रचना.

शुभ दीपावली...........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 2, 2013 at 10:33am

आदरणीय अखिलेश जी, हास्यप्रद व् एक सार्थक सन्देश देती हुयी रचना पर बहुत बहुत बधाई

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on November 2, 2013 at 6:21am

सन्देशपरक हास्य व्यंग्य ....... बधाई ...... अन्यथा न लें , शिल्प पक्ष पर विशेष ध्यान वांछित है आदरणीय !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2013 at 10:33pm

आदरणीय बड़े भाई जी , सुन्दर हास्य व्यंग रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !!!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service