For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल: ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122
_______________________________________________________________


ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी
कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी

चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से
लगी चोट दिल पर कहा उसने जब ये, कि मुझसी न होगी दिवानी तुम्हारी

सरे राह तुम मिल गई यूं लगा था, कि आसान है अब सफर जिंदगी का
झुका कर निगाहों को तुमने कहा था, कि बनकर रहूंगी मैं रानी तुम्हारी

मकां मेरे दिल का है उजड़ा हुआ सा, यहां खिलती थी प्यार की भी कली कुछ
तलाशी जो ली इस बयाबान की तो, मिलीं चिट्ठियां कुछ पुरानी तुम्हारी

भले नफरतों का रहे बोलबाला, मगर मेरा विश्वास भी कम नहीं है
मेरा प्यार हरगिज न इतिहास होगा, ये दुनिया सुनेगी जुबानी तुम्हारी

-शकील जमशेदपुरी
_____________________________________________________________
*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1095

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 8:37am

वाह वाह, बहुत बढ़िया ... मज़ा आ गया ... बाकी सुधीजनों ने जो मार्गदर्शन किया है, उस का आप भरपूर लाभ लेंगे ही ... यही विश्वास है ..
सादर   

Comment by वीनस केसरी on October 24, 2013 at 1:51am

आपकी रचनाधर्मिता को सलाम
आपकी प्रयोगधर्मिता हो सलाम

ग़ज़ल में भर्ती के शब्दों की बहुतायत न् होती तो ग़ज़ल और निखर कर मंच पर प्रस्तुत होती

आदरणीय राम अवध साहब ने जो बात कही है वो ध्यान देने योग्य है इसे ऐब ए शिकस्ते नारवा कहते हैं ,,,
इस तरह की सभी दोहरी बह्र में इसका पालन आवश्यक होता है

मतले में शुतुर्गुरबा का ऐब है जो की रदीफ़ के कारण कट जा रहा है मगर आप दुरुस्त कर लें तो बेहतर होगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 23, 2013 at 9:37pm

आदरणीय शकील भाई , इस बह्र मे बहुत दिनो बाद गज़ल पढ रहा हूँ , बहुत सुन्दर !!!! लाजवाब  गज़ल कही है बधाई !!!!!

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 8:16pm

सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 23, 2013 at 7:56pm

आदरणीय शकील भार्इ जी,  बहुत सुन्दर रचना। आ0 राम अवध जी की बात से मैं भी इत्तेफाक रखता हू। शुभकामनाओं सहित बधार्इ स्वीकारें। सादर,

Comment by शकील समर on October 23, 2013 at 7:05pm

​धन्यवाद आदरणीया annapurna bajpai  जी

Comment by annapurna bajpai on October 23, 2013 at 6:52pm

सुंदर गजल बधाई आपको । 

Comment by शकील समर on October 23, 2013 at 6:17pm

आदरणीय Ram Awadh VIshwakarma जी
इस सुझाव के लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूं। आपने जो मिसरा सुझाया है उसमें भाव कहीं ज्यादा स्पष्ट है। सुधार करवाने के लिए एक बार पुन: आपका आभार।

और हां, मैं उस्ताद शायर नहीं हूं, बल्कि इस मंच पर मौजूद गजल शिल्प के जानकारों से सीख रहा हूं। आप भी अपना आशीर्वाद बनाए रखिएगा। सादर।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2013 at 6:05pm

आदरणीय शकील जमशेदपुरी साहब जी
मेरे ज्ञान के अनुसार आपके गजल की बहर है फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन, फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
आपके शेर '' चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से यह बहर के हिसाब से जहाँ अर्ध विराम है वहाँ फऊलुन समाप्त हो जाता है और आगे फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन मे ंनही आता है मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार शेर इस प्रकार होना चाहिये
'' चमन में मेरे एक बुलबुल है जानम, जो करती है बातें तुम्हारी तरह से आप उस्ताद शायर हैं मैं गलत भी हो सकता हूँ जरूरी नहीं कि मैं सही कह रहा हूँ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
7 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
10 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
10 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
10 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
10 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service