For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान

जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान

बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे

जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे

हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी

पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!

- बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:10pm

आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी, जीतेन्द्र भाई, गिरिराज जी आप सबका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2013 at 9:37pm

आ० बृजेश जी 

बहुत भावमय कुण्डलिया ...मन जैसे आनंद से सराबोर हो गया..

तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान

जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान............. वाह! वाह! बंशी धुन में रम जग भूल जाना .....शीतल एहसास 

बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे

जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे.................दर्प के दर्पण का टूटना ..अहा! अहा! पूर्ण समर्पण से ही होता है..बहुत सुन्दर 

हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी

पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!............जग से वैराग्य ...पर मन में तो कान्हा छवि ही बस गयी ..वाह! वाह! 

मैंने भी बिलकुल इन्ही भावों पर एक कुण्डलिया की रचना की थी ..अंतिम पंक्तियाँ सांझा करने का मोह संवरण नहीं कर पा रही....

प्राण भक्ति में लीन ओढ़ चूनर केसरिया 

प्रभु संग मधुर मिलन हुई जोगन बावरिया....ये प्रस्तुति कृष्ण की ही समर्पित थी  

इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 3:42pm
आदरणीय बृजेश भाई , सुन्दर भावो से रची कुंडलिया के लिये आपको बधाई !!!!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:45pm

वाह वाह बहुत ही सुन्दर आदरणीय ब्रिजेश सर जी

बधाई स्वीकारें

Comment by Neeraj Neer on October 19, 2013 at 12:29pm

बहुत ही उत्तम भाव..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2013 at 12:16pm

जी बस उल्टा पल्टी और कुछ नहीं आदरणीय :):):):)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 12:09pm

//प्रारम्भ में तेरी कान्हा करने से अब कुण्डलिया निर्दोष हो गई है|//

आदरणीया, भाई बृजेश ने तो मूलतः यही वाक्यांश दिया है न ! ..  ???..

:-)))))))))))))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2013 at 12:03pm

प्रारम्भ में तेरी कान्हा करने से अब कुण्डलिया निर्दोष हो गई है| :):):)


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 11:59am

ज्ञान वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ भईया जी । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 11:55am

हां, कान्हा तेरी  बिल्कुल सही है.  मेरी दृष्टि पहले शब्द कान्हा और अंतिम शब्द तेरी पर गयी. इस कारण मेरा ध्यान नहीं गया. समुच्चय में शब्दों को नही देख पाया. खेद है.

शुभ-शुभ 

छन्न से दरपन से टूटे..  नियमतः सही होगा. क्योंकि छन्न त्रिकल है और रोला छंद के सम चरण का विन्यास त्रिकल से ही प्रारम्भ हो सकता है. यदि कोई विद्वान या कवि इस चरण को अन्य ढंग से प्रारम्भ करें तो वैधानिक दोष होता है.

लेकिन यह पदांश ..दर्प के दरपन टूटे... कुण्डलिया के मूल भाव में समायोजित यानि पूरी तरह गूँथा हुआ महसूस होता है. दर्प का टूटना विशेष इंगित को बखूबी संप्रेषित करता है जो आगे के बैराग (वैराग्य) के सैद्धांतिक ज्ञान के थोथेपन को उजागर करता है.. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service