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ग़ज़ल (३) : मुझे लड़की बनाना !

मेरे अल्लाह ! तू लड़की बनाना

मुझे आता नहीं, चोटी बनाना//१

.

बनाना चाहता हूँ ‘आदमी’ को

बुरा है पर, ज़बरदस्ती बनाना//२

.

मुझे इक 'माँ' लगे है, देख लूं जो        

सनी मिट्टी लिए रोटी बनाना//३

.

न डूबेगा समंदर में, लहू के  

शिकारी सीख ले कश्ती बनाना//४

.

चला वो, तीर-भाले को पजाने

सिखाया था जिसे बस्ती बनाना//५

.

उजालों से मुहब्बत है, मुझे भी

सिखा दे माँ मुझे तख्ती बनाना//६

.

जवां बेटी, न पैसे, और शादी

कहाँ मुम्किन तुझे छोटी बनाना//७

न बेटे में, न बेटी में कमी है

कभी सिखला उसे हस्ती बनाना//८

.

ख़ुदा को फ़िक्र तो ग़म 'नाथ' को भी 

पड़ेगा फिर 'उसे' धरती बनाना//९

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : मिरे-12/अल्लाह-221/तू-2/लड़की-22/बनाना-122 [1222-1222-122]

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 14, 2013 at 4:26pm

विनम्रता ददाति विनयम ......आपकी बातो से स्पष्ट है की आप सिर्फ वाह वाही  नहीं चाहते अपनी रचनाओं में सुधार,और ज्ञानोपार्जन हेतु इस मंच से जुड़े हैं; तो ये मंच आपको बहुत कुछ देगा ,पहली बार आपकी ग़ज़ल पढ़ी ,विद्वद  जनों की प्रतिक्रिया भी पढ़ी जो आपने सहज  स्वीकार की ,एक अच्छे ,गंभीर रचनाकार का सबसे पहला गुण यही होता है की जहाँ हम शाबाशियाँ स्वीकारते हैं हमे उसी तरह उस समीक्षा को भी  स्वीकारना चाहिए जिसमे हमारे शुभ चिन्तक  हमारी कमियाँ बताते हैं  आपने काफिया सही करके ग़ज़ल को दोष मुक्त कर दिया बहुत अच्छा लगा ,बस एक बात का ध्यान और रखिये की आपका मिसरा अपने भाव भी पूर्णरूपेंण स्पष्ट करे ----

जैसे इस शेर में ----

जवां बेटी, न पैसे, और शादी

कहाँ मुम्किन तुझे छोटी बनाना//७

. कुछ भाव सपष्ट नहीं हैं ,अर्थात जो भाव आप लाना चाह रहे हैं वो नहीं आ पाए ,बाकी बहर पर आपकी ग़ज़ल कासी हुई है 

फिलहाल बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 14, 2013 at 3:20pm

बहुत बहुत आभार डॉ आशुतोष मिश्रा साहब....हार्दिक नमन !!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 10:21am

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सादर 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:48pm

जी...शकील साहब...सत्य तो यह है की सही वक्तव्य हो तो वाह-वाही कहीं मिल जाती है..लेकिन नी:संकोच सिखाने वालों, कमियाँ बताने वालों की मैंने हर जगह कमी देखी है..इसीलिए यह मंच मुझे बहुत प्रिय है.और एक आदर है इस मंच का इस मंच से जुड़े सभी सदस्यों के प्रति,,,..और उम्मीद है..यह मंच भी मुझे कुछ अंतराल बाद अपना लेगी .....चरैवति चरैवति ....नमन आपको...// आदरणीय अरुण शर्मा अनंत साहब...मैंने पाठशाला की सामग्रियों को पढ़ा है..लेकिन कभी कभी कुछ बातें स्पष्ट नहीं हो पाती है...तब आप सबों की अनुकम्पा का ही सहारा रहता है.....नमन आपको !!!! . 

Comment by शकील समर on October 13, 2013 at 4:37pm

आदरणीय रामनाथ शोधार्थी जी, सीखना—सिखाने का क्रम आगे बढ़ता रहना चाहिए, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:35pm

नमन आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, आपका कथन अक्षरश: वाज़िब है...लग रहा अब ग़ज़ल सही हो जाएगी...आप सभी महानुभावों के इस्लाह के लिए कोटिश: नमन... !

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:32pm

बहुत बहुत आभारी हूँ...आभार आपका शकील जमशेद्पुरी साहब...आपकी सहृदयता के लिए, इस विनम्र विवेचना हेतु...नमन...आपको...!!!!!!! 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 4:32pm

आदरणीय रामनाथ जी मतले में काफिया बेटी की जगह एडमिन महोदय जी से निवेदन कर लड़की करवा लें ग़ज़ल दोषमुक्त हो जाएगी. जैसा कि आदरणीय भ्राताश्री जी ने कहा भी, आपसे इतना ही कहूँगा कि एक बार पाठशाला में जाकर ग़ज़ल की बातें का अध्ययन अवश्य करें काफी कुछ स्पष्ट हो जायेगा. आपका प्रयास बहुत उम्दा है इस हेतु बधाई स्वीकारें. 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:31pm

आदरणीय बाग़ी साहब, दोषयुक्त ग़ज़ल कोई थोड़े पोस्ट करना चाहता है, हाँ..मुझे भी टी और ती को लेकर संशय था...जिसका निराकरण..के चक्रव्यूह में फंसा हुआ था...और देखिये आप सबों की दयालुता से..बातें आसान होती ज़ा रही है...इसे अन्यथा न लें...ऐसी गुजारिश है...नमन सहित....!!! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2013 at 4:23pm

//अगर ....मेरे अल्लाह तू लड़की बनाना //मुझे आता नहीं चोटी बनाना //

हां,काफिया ई की मात्रा पर तय हो जायेगा और ग़ज़ल काफिया रदीफ़ स्तर पर दोष मुक्त हो जाएगी । 

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