For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : बहन जी (गणेश जी बागी)

"अरे वाह ! कुछ ही दिनों में ये मोबाइल, ये नया टैब ! क्या बात है मैडम जी, कोई लाटरी लग गई है क्या ?", राधिका ने अपनी रूम-मेट आयशा को छेड़ते हुए कहा | 
"नहीं रे, ये दोनो गैजेट तो प्रशांत ने ग़िफ़्ट किये हैं |"
"देख आयशा, मैने तुझे पहले भी आगाह किया था.. आज फिर कह रही हूँ, ये प्रशांत और उसके दोस्तों से संभल के रह... वे लोग मुझे ठीक...."
"तू न... जिंदगी भर बहन जी ही बनी रहेगी..  अरे यार, बड़े शहर के इस नामी कॉलेज में पढ़ने आई है, समय के साथ जीना तो सीख..", राधिका की बात बीच में ही काटती आयशा बोल पड़ी | 
"खैर, तुझे जो अच्छा लगे कर, पर मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि बगैर स्वार्थ के कोई किसी को ऐसे गिफ्ट नही देता.."

प्रशांत की बर्थडे पार्टी से आयशा अबतक नहीं लौटी थी । रात के साढ़े बारह बज चुके थे । कि, दरवाजे पर दस्तक हुई । राधिका ने दरवाजा खोला तो आयशा ही थी, बदहवास !.. लगातार रोती हुई । 
राधिका को समझते देर न लगी, "..तो प्रशांत और उसके दोस्तों ने आज ग़िफ़्ट की कीमत वसूल ....."

आयशा की हिंचकियाँ अबतक बेतहाशा बढ़ गयी थीं |

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : मिठाई

Views: 1134

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 5:45pm

आदरणीय भ्राताश्री आज की सच्चाई को बहुत ही बारीकी से दर्शाया है आपने लघुकथा का प्रस्तुतीकरण भी बेजोड़ है. इस सुन्दर सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 4:43pm
"बगैर स्वार्थ के कोई किसी को ऐसे गिफ्ट नही देता.."
सब समझते हुए भी आजका प्रबुद्ध सुबुद्ध नहीं हो पा रहा ,दुर्भाग्य का विषय है .मार्मिक है और सजगता का बखान करती एक समसामयिक चेतावनी भी .शब्द -शब्द ने सही रंग उकेरे हैं .बधाई
Comment by रविकर on October 1, 2013 at 3:36pm

वास्तविकता के करीब-
शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2013 at 2:20pm

आदरणीय गणेश सर सादर प्रणाम

बहुत ही समसामयिक विषय पर श्रेष्ठतम सृजन किया है आपने

ग़ज़ब

इस सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 1, 2013 at 12:17pm

आज की सच्चाई को बेनकाब करती लघु कथा ,आधुनिकता की होड़ में कितना कुछ गँवा बैठती हैं होश पहले ही क्यों नहीं आता ,आज जो हो रहा है उसमे एसी आधुनिकता ही ज्यादा पिसती नजर आ रही है ,उस बिंदु पर अच्छा प्रहार करती हुई लघु कथा अपना सन्देश छोड़ने में पूर्णतः सक्षम बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश बागी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 10:13am

 आदरणीय शुभ्रांशु जी की प्रतिक्रिया से सहमत हूँ, बहुत बढ़िया लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी

Comment by Shubhranshu Pandey on October 1, 2013 at 8:51am

आदरणीय गणेश भैया, 

एक सशक्त कथा, इस कहानी में कई आयामों को एक सुन्दर तरीके से जोडा़ गया है.

युवाओं का गैजेट प्रेम, बडे कालेज का नाम, हास्टल का जीवन, अधुनिकता का दंभ और खतरे की आशंका...

इन सब ने मिलाकर एक मजबूत आधार दिया है, इस कथा को. 

ये सच है कि महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है, लेकिन इस स्थिति के परिप्रेक्ष्य में स्वयं महिलाओं का रोल क्या है? बात थोडी़ कड़वी है. लेकिन ध्यान देने योग्य हैं... जिस पर आपकी कथा ने ध्यान आकृष्ट किया है.

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 8:13am

आदरणीय गणेश जी, सावधान रहने का इशारा करती हुई आपकी लघुकथा सर्वकालिक भी है और सामयिक भी !! आपको हार्दिक बधाई !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 30, 2013 at 11:30pm

आभार आदरणीया गीतिका जी । 

Comment by वेदिका on September 30, 2013 at 10:58pm

आज के समय के संदर्भ में सचेत करती हुयी कथा|

बहुत बहुत शुभकामनायें !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service