For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

केवल एक मिठाई ...माँ...............

केवल एक मिठाई ...माँ...............

रिश्ते नाते संबंधो की होती नरम चटाई .......माँ
शीत लहर मे विषमताओं की , लगती गरम रज़ाई ...माँ


हर रिश्ते को परखा जाना , तब जाना व्यापार है ये 
मूँह में राम बगल में छूरी , दुनिया का व्योहार है ये 
दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ

कोई कितना ही रोता हो सच ही जानो चुप जाएगा 
दर्द भले हो कितना ज़्यादा शर्त लगा तो रुक जाएगा
हर दुख जिससे कट जाता हो ऐसी एक दवाई .....माँ

घर में भीड़ भले कितनी हो, माँ ना हो दुनिया सूनी
एक खुशी भी कितनी छोटी माँ हो तो हो जाती दूनी
सारे सूरज जब छुप जाते , होती दियासलाई.............माँ


मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on October 6, 2013 at 2:19pm

बहुत सुंदर गीत रचा आपने आ0 अजय जी!

किस किस बंद की प्रशंसा करूँ सभी एक से बढ़ कर एक प्रतीत हो रहे है| कोई सर्वश्रेष्ठ बंद चुनना मुश्किल है| गीत का नैरन्तर्य आखिरी तक बांध के रखता है| फिर भी ये चुना मैंने ....

हर रिश्ते को परखा जाना , तब जाना व्यापार है ये 
मूँह में राम बगल में छूरी , दुनिया का व्योहार है ये 
दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ

बहुत बहुत शुभकामनायें आपको आ0 अजय जी!

Comment by ajay sharma on October 2, 2013 at 11:10pm

prachi di ka comment pa kar .....dhanya .......huya .........

Comment by ajay sharma on October 2, 2013 at 11:08pm

sabhi ka dil ki gahrayio se shukriya .......typing mistakes na ho aisi koshish avashya karoonga ..............

Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:18am

रचना में कोमल भाव अच्छे लगे। बधाई।

 

Comment by MAHIMA SHREE on October 1, 2013 at 10:29pm

दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ

हर दुख जिससे कट जाता हो ऐसी एक दवाई .....माँ

घर में भीड़ भले कितनी हो, माँ ना हो दुनिया सूनी
एक खुशी भी कितनी छोटी माँ हो तो हो जाती दूनी
सारे सूरज जब छुप जाते , होती दियासलाई.............माँ.... वाह माँ तो बस माँ होती है ... ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए ढ़ेरों बधाई....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 8:48pm

आदरणीय अजय भाई , माँ को समर्पित आपकी नये अन्दाज की रचना बहुत सुन्दर लगी !! आपको बधाई !!

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 7:35pm

बहुत ही प्यारी  रचना आदरणीय  //हार्दिक बधाई  आपको //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 5:58pm

आदरणीय अजय शर्मा जी 

माँ को समर्पित कोमल भाव लिए बहुत सुन्दर प्रस्तुति... 

हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 5:51pm

वाह आदरणीय बहुत ही प्यारी प्रस्तुति अंतिम बंद ने तो बस क्या कहूँ दिल को छू लिया दिल से बधाई स्वीकारें भाई जी, टंकण त्रुटियों पर ध्यान दें.

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 4:52pm
" घर में भीड़ भले कितनी हो, माँ ना हो दुनिया सूनी
एक खुशी भी कितनी छोटी माँ हो तो हो जाती दूनी
सारे सूरज जब छुप जाते , होती दियासलाई........माँ " --- यहाँ पहुंच कर तो कविता अन्तस्तल को स्पर्श करती है , कितना अभिव्यंजित भाव उकेरा है ! अत्यंत सुन्दर |हार्दिक आभार अजयजी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service