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केवल एक मिठाई ...माँ...............

केवल एक मिठाई ...माँ...............

रिश्ते नाते संबंधो की होती नरम चटाई .......माँ
शीत लहर मे विषमताओं की , लगती गरम रज़ाई ...माँ


हर रिश्ते को परखा जाना , तब जाना व्यापार है ये 
मूँह में राम बगल में छूरी , दुनिया का व्योहार है ये 
दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ

कोई कितना ही रोता हो सच ही जानो चुप जाएगा 
दर्द भले हो कितना ज़्यादा शर्त लगा तो रुक जाएगा
हर दुख जिससे कट जाता हो ऐसी एक दवाई .....माँ

घर में भीड़ भले कितनी हो, माँ ना हो दुनिया सूनी
एक खुशी भी कितनी छोटी माँ हो तो हो जाती दूनी
सारे सूरज जब छुप जाते , होती दियासलाई.............माँ


मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Views: 642

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Comment by वेदिका on October 6, 2013 at 2:19pm

बहुत सुंदर गीत रचा आपने आ0 अजय जी!

किस किस बंद की प्रशंसा करूँ सभी एक से बढ़ कर एक प्रतीत हो रहे है| कोई सर्वश्रेष्ठ बंद चुनना मुश्किल है| गीत का नैरन्तर्य आखिरी तक बांध के रखता है| फिर भी ये चुना मैंने ....

हर रिश्ते को परखा जाना , तब जाना व्यापार है ये 
मूँह में राम बगल में छूरी , दुनिया का व्योहार है ये 
दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ

बहुत बहुत शुभकामनायें आपको आ0 अजय जी!

Comment by ajay sharma on October 2, 2013 at 11:10pm

prachi di ka comment pa kar .....dhanya .......huya .........

Comment by ajay sharma on October 2, 2013 at 11:08pm

sabhi ka dil ki gahrayio se shukriya .......typing mistakes na ho aisi koshish avashya karoonga ..............

Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:18am

रचना में कोमल भाव अच्छे लगे। बधाई।

 

Comment by MAHIMA SHREE on October 1, 2013 at 10:29pm

दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ

हर दुख जिससे कट जाता हो ऐसी एक दवाई .....माँ

घर में भीड़ भले कितनी हो, माँ ना हो दुनिया सूनी
एक खुशी भी कितनी छोटी माँ हो तो हो जाती दूनी
सारे सूरज जब छुप जाते , होती दियासलाई.............माँ.... वाह माँ तो बस माँ होती है ... ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए ढ़ेरों बधाई....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 8:48pm

आदरणीय अजय भाई , माँ को समर्पित आपकी नये अन्दाज की रचना बहुत सुन्दर लगी !! आपको बधाई !!

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 7:35pm

बहुत ही प्यारी  रचना आदरणीय  //हार्दिक बधाई  आपको //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 5:58pm

आदरणीय अजय शर्मा जी 

माँ को समर्पित कोमल भाव लिए बहुत सुन्दर प्रस्तुति... 

हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 5:51pm

वाह आदरणीय बहुत ही प्यारी प्रस्तुति अंतिम बंद ने तो बस क्या कहूँ दिल को छू लिया दिल से बधाई स्वीकारें भाई जी, टंकण त्रुटियों पर ध्यान दें.

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 4:52pm
" घर में भीड़ भले कितनी हो, माँ ना हो दुनिया सूनी
एक खुशी भी कितनी छोटी माँ हो तो हो जाती दूनी
सारे सूरज जब छुप जाते , होती दियासलाई........माँ " --- यहाँ पहुंच कर तो कविता अन्तस्तल को स्पर्श करती है , कितना अभिव्यंजित भाव उकेरा है ! अत्यंत सुन्दर |हार्दिक आभार अजयजी .

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