For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा ( गज़ल - गिरिराज भंडारी )

212    212    212     212 

.

छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा

 

सड़ चुकी मान्यता सांस फिर ले रही

दिन चढ़े तक कोई शख़्स ज्यों सो रहा  

 

ज़ाहिरन बात ये कह रहा है करम

बढ़ गया पाप जब तो कोई धो रहा

 

हाल की शक्ल में फ़र्क़ कुछ तो रहे

कल गया बीत वो जो रहा सो रहा

 

पश्चिमी कुछ हवा सभ्यता खा रही

आदमी इसलिये आदमी खो रहा

 

तितलियाँ ख़ौफ़ से उड़ नही पा रहीं

वाक़िआ कुछ बुरा रोज़ ही हो रहा

 

रोशनी भी कहीं दिख रही है मगर

अब्र भी कुछ घना उस तरफ हो रहा

 

    मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 936

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 6:32pm

आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल की सराहना के लिये और हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 27, 2013 at 11:17pm

सारे अशार एक ओर आखिरी शेर एक ओर.

बधाई स्वीकारें आदरणीय .. अंदाज़ भा गया .. वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 5:12pm

आदरणीय वीनस भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , आपकी बात पूरी तरह समझ आ गई !! त्वरित समाधान के लिये आपको पुनः धन्यवाद !!

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 4:52pm

वुस्अत - विस्तार, सामर्थ्य

इस ग़ज़ल में रदीफ काफिया की बंदिश के कारण शाइर अपनी बात को कहने के लिए एक सीमित दायरे में बांध गया है फिर भी ग़ज़ल को बखूबी निभाया गया है 
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 1:17pm

आदरणीय वीनस भाई , आपके हर शब्द मेरे लिये अमूल्य हैं , सराहना के लिये बहुत बहुत शुक्रिया !! आदरणीय गज़ल के लिहाज़ से वुसुअत धटाना किसे कहेंगे , अगर सम्भव हो तो ज़रूर बतायें , ताकि आगे से इसका भी खयाल रख सकें !! आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 1:11pm

आ दरणीय चन्द्र शेखर भाई , हौसला अफज़ाई के लिये शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 1:11pm

आदरणीय बड़े भाई अखिलेश  , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत आभार !!

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 2:24am

बढ़िया ग़ज़ल हुई है
रदीफ काफिया की बंदिश वुसअत को घटा रही है मगर आपने अपनी और से कोई कसर नहीं छोड़ी है 
तहे दिल से दाद कुबूल फरमाएं

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 2:15pm

सुन्दर मुद्दे उठाती हूई ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 24, 2013 at 9:52pm

पश्चिमी कुछ हवा सभ्यता खा रही

आदमी इसलिये आदमी खो रहा .... ( इंसानियत खो रहा )

अच्छी गज़ल की बधाई ।

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service