For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
जीवन है एक कठोर संग्राम,
इसे विजित कर आगे निकल तू।
क्या रखा है इस जगत में,
यह तो केवल छाया-माया है।
क्या रखा है इस जीवन में,
इसने तो केवल भरमाया है।
तेरा अपना कुछ भी नहीं है,
केवल भ्रम की एक छाया है।
जब छोड़कर जाना है सब,
तो क्यों तू इतना इतराया है।
जब झूठे हैं ये सारे  बंधन,
क्यों  इनमें स्वयं को रमाया है।
फिर तोड़ दे तू ये सारे बंधन,
इनके भ्रम से बाहर निकल तू।
रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
कब था वो तेरा साथी,
जिस पर तूने स्नेह लुटाया।
कब था वो तेरा अपना,
जिस पर तूने स्वयं को मिटाया।
कब थे वो परिजन तेरे,
जिनके लिए तूने कष्ट उठाया।
धन-वैभव सब यहीं छूटेगा,
कौन इन्हें संग ले जा पाया।
क्षणिक हैं ये सांसारिक बंधन,
जिनके मोह में तू भरमाया।
तेरी मृत्यु संग टूटेंगे ये सब,
अतः जीवन रहते ही संभल तू।
रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
जीवन है एक कठोर संग्राम,
इसे विजित कर आगे निकल तू।
'सावित्री राठौर'
१६ सितम्बर २०१३
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 1113

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:24pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी,आपने रचना के मर्म को समझकर मेरी रचनाधर्मिता को और बढ़ावा दिया है,जिसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करती हूँ।

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:21pm

रामशिरोमणि जी,आपका आभार !

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:20pm

आदरणीय प्राची जी,आपकी अमूल्य राय हेतु मैं आपकी आभारी हूँ,और निकट भविष्य में मैं अपनी इन कमियों को दूर करने का प्रयास अवश्य करूँगी। वैसे मैं छंद बंधन से मुक्त रहना चाहती हूँ और मुक्त छंद में ही अपनी रचनाएँ लिखना चाहती हूँ।मेरी रचनाओं में निहित कमियों का एक बड़ा कारण,समयाभाव के कारण इस मंच का लाभ न उठा पाना भी था,किन्तु आगे से मैं इस कारण को दूर करने का प्रयास अवश्य करूँगी।

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:13pm

आदरणीय विजयाश्री जी,आपने रचना के मर्म को समझकर मुझे उत्साहित किया है,जिसके लिए आपका धन्यवाद !

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:11pm

आदरणीय विजय जी,आप जैसे पूजनीय व्यक्ति जब मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, तो मुझे प्रेरणा मिलती है,जिसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ।

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:08pm

जितेन्द्र जी,आपका बहुत- बहुत आभार !

Comment by Savitri Rathore on September 18, 2013 at 11:07pm

अन्नपूर्णा जी,आपकी सराहना हेतु आभारी हूँ।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 18, 2013 at 7:30pm

जब छोड़कर जाना है सब,
तो क्यों तू इतना इतराया है।
जब झूठे हैं ये सारे  बंधन,
क्यों  इनमें स्वयं को रमाया है।
फिर तोड़ दे तू ये सारे बंधन,
इनके भ्रम से बाहर निकल तू।
रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।

आदरणीया सावित्री जी ..सुन्दर रचना ... इस नश्वर संसार में ये सब जानते हुये भी काश कोई थोडा भी सुधरे मानव बने तो आनंद और आये
आभार
भ्रमर ५

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:24pm

सुंदर  रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया सावित्री जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 18, 2013 at 5:19pm

आदरणीया सावित्री जी 

रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं... पर अब आपकी अभिव्यक्तियों में गेयता व शिल्प की कमी खलने सी लगती है.. आखिर आप अब तक मंच पर प्रवाहित ज्ञान गंगा का लाभ उठाने से वंचित क्यों ?

आपके सद्प्रयासों की अपेक्षा है और सुगठित रचनाओं की प्रतीक्षा.

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
9 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service