For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आकाश में काली घटा छाई,
आज फिर तुम्हारी याद आई।
लगा तुमने जैसे मुझे छू लिया,
जब चली झूमकर ये पुरवाई।
मन्द -मन्द चली शीतल पवन,
मन में जल उठी विरह-अगन।
मन को शीतल करने के लिए
वर्षा में भिगोया मैंने अपना तन।
नन्हीं-नन्हीं -सी बूँदें,ये जल की,
और मेरे विरह की ये जलन बड़ी।
अब तो आकर मुझे लगा लो अंग,
बस यही सोच रही  मैं खड़ी -खड़ी।
जाने कब साकार होगी ये कल्पना,
कब होगा पूरा मेरा सुन्दर सपना?  
है जो मुझसे अभी तक  पराया-सा,
जाने कब तक होगा वो मेरा अपना?

हे प्रिय! कब आओगे तुम मेरे देश,
धारण कर न जाने कौन -सा वेश?
करते जा रहे हो मुझे स्वयं से दूर,
कब दोगे तुम मुझे हृदय में प्रवेश?
कब समाप्त होगी यह मेरी प्रतीक्षा,
कब तक पूरी होगी ये मेरी इच्छा?
कब तक बसे रहोगे मेरे मन में,
कब तक लोगे मेरी प्रेम -परीक्षा?
देखो,प्यासी धरती को भिगो दिया
और अम्बर ने शीतल कर दिया।
मेरे हृदय की विरहाग्नि को,क्या
प्रेम -जल से दूर करेगा मेरा पिया?
 जबसे रिमझिम सावन बरस रहा,
तुम्हारे लिए ये मेरा मन तरस रहा।
तुम्हारी स्मृतियों से व्याकुल हृदय,
और नेत्रों से अविरल जल बरस रहा।
अब तो आ जाओ ओ मेरे मनभावन,
इससे पहले कि बीते मनोरम सावन।
मेरे रोम -रोम को अब पुलकित कर दो, 
छूकर प्रेम से,ये मेरा सुवासित तन-मन।
आकर मुझ पर अब प्रेम की वर्षा कर दो,
मेरे सारे सपनों को बस तुम पूरा कर दो।
इन प्यासे नेत्रों को अपने दर्शन देकर तुम,
अब मेरी समस्त पीड़ा और तापों को हर लो।
'सावित्री राठौर '
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 404

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on August 2, 2013 at 7:08pm

आदरणीय लक्ष्मनप्रसाद जी ,नमस्कार !
  आपका बहुत -बहुत धन्यवाद !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2013 at 10:40am

आकर मुझ पर अब प्रेम की वर्षा कर दो,
मेरे सारे सपनों को बस तुम पूरा कर दो।
इन प्यासे नेत्रों को अपने दर्शन देकर तुम,
अब मेरी समस्त पीड़ा और तापों को हर लो।-----प्रभु जरूर सुनता है | सुन्दर भाव प्रतुती के लिय बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service