वज़न -२२१२ २२१२
ठगते रहे सब प्यार में!
बिकता रहा बाज़ार में !!
लेने चला मै रौशनी!
पागल सा अन्धे गार में !!
खुद ही बताता है जखम !
थी धार क्या औज़ार में !!
कैसे नहीं गिरती भला !
थी रेत ही दीवार में !!
कैसे करूँ तारीफ़ मै!
दम ही कहाँ अशआर में !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
खुद ही बताता है जखम !
थी धार क्या औज़ार में !!
कैसे नहीं गिरती भला !
थी रेत ही दीवार में !!....बहुत ही सुंदर प्रयास प्रिय राम शिरोमणि जी बधाई आपको
बहुत बहुत आभार आदरणीया विजयाश्री जी ///सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी //स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी //स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई सिज्जू जी//स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर
प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
बहुत शानदार गज़ल प्रयास..
हार्दिक बधाई
बहुत खूब
बधाई स्वीकारें राम शिरोमणि पाठक जी
सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय राम जी।
सादर,
विजय निकोर
बढ़िया ग़ज़ल भाई रामशिरोमणि जी बधाई आपको, यूँ ही प्रयासरत रहें शुभकामनायें
Bhai Ram ji, Sanshay Dur kar ke margdarshan karne ke liye aabhar.
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