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ग़ज़ल (गणेश जी बागी)

ग़ज़ल
वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। 
 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 
तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर

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Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:49pm

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।बहुत  सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय गणेश जी  //हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by Ravi Prabhakar on September 16, 2013 at 1:16pm

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया...

कटु सत्‍य। 

सुभान अल्‍लाह ।

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 1:11pm

गणेश भाई जी आपकी असहमति का स्वागत है

सपाट बयानी से ग़ज़ल की दुनिया में क्या आशय होता है इसे तनिक स्पष्ट कर दूं
कुछ बिम्ब है - पत्थर और शीशा, मयखाना - सकी, सय्याद - परिंदे इनके जरिये बात करने पर बात बिम्ब से ही होगी सपाट बयानी नहीं होगी ..... मगर इन बिम्बों के साथ शाइर की कहन की मौलिकता जरूरी है ... नयापन जरूरी है ..... जो बात हजारों बार कही जा चुकी है उसी अंदाज में उसी कहन में उसी भाव में हम भी कह दें तो उसे सपाट बयानी कहा जाता है

इसी सपाटबयानी से बचने में शाइर की जिंदगी गुज़रती है ... शिल्प तो २-३ वर्षों में सीखा ही जा सकता है
आशा करता हूँ मेंरे कहे का अर्थ स्पष्ट हुआ होगा
आप जिस सपाटबयानी की बात सोच रहे हैं वो ग़ज़ल में आते ही अशआर अशआर नहीं रह जाते ,,, ताजज्जुल के बिना कैसी ग़ज़ल ???
ऐसा होते ही शेर नारे बन जाते हैं और नारे कभी शेर नहीं होते .,,,,
हाँ शेर जरूर नारे हो सकते हैं

हाँ बहर रदीफ़ काफ़िया के काम्बिनेशन ने आपको जरूर परेशान किया है वर्ना आप खुद मानेगे कि आपने इससे बहुत अच्छी ग़ज़लें कही हैं
सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 16, 2013 at 6:36am

प्रिय वीनस भाई, इत्ता दोष की तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया था यहाँ चुक हुई है, ध्यान दिलाने हेतु बहुत बहुत आभार, रही बात सपाट बयानी की तो मैं इससे सहमत नहीं हूँ, यदि मतला को छोड़ दिया जाय तो बाकी अशआर में बात सीधे सीधे तो नहीं कही गई है ।  

पुनः आपका बहुत बहुत आभार । 


एडमिन जी से अनुरोध है कि मतला और हुस्ने मतला को यूँ संशोधित करना चाहेंगे………………… 

बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। 
 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 
तो शेर कहना आ गया ।2।

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 1:32am

रह से ही तो रहना बना है तो निश्चित ही मूल शब्द रह है और हर्फ़े रवी है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 15, 2013 at 10:28pm

आदरणीय वीनसजी, //मगर इस ताले की कुंजी ये है कि शाइर को हर्फे रवी की पहचान हो .... 

हर्फे रवी न पहचान सकें तो सब कुछ बेकार है// 

यही तो सबसे बड़ा मस्अला है, खास तौर पे मेरे जैसों के लिये, सीखना तो चाहते हैं, बहुत सारी ऐसी बाते हैं जो मेरे लिये स्पष्ट नही हैं। मसलन! हिन्दी भाषा के अनुसार मूल शब्द क्या होगा, "करना या कर" ? या फिर "रहना या रह" ?

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:26pm

गज़ब! गज़ब! गज़ब! बहुत ही बढ़िया, आपको हार्दिक बधाई.

Comment by वेदिका on September 15, 2013 at 4:49pm

बहुत बढ़िया गज़ल आदरणीय बागी जी!

बकवास करना आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। // क्या कहने ... बहुत दमदार शुरुआत से शुरू कर दिया!!

बधाई !!

 

Comment by वीनस केसरी on September 15, 2013 at 4:39pm

काफिया परिभाषा -

दो शब्द हमकाफिया तभी हो सकते हैं जब उनका हर्फे रवी सामान हो तथा उसके पूर्व यदि कोई स्वर अथवा हस्व व्यंजन हो तो वो भी सामान हो 

यह परिभाषा सौ सवालों का जवाब है .. मगर इस ताले की कुंजी ये है कि शाइर को हर्फे रवी की पहचान हो .... 

हर्फे रवी न पहचान सकें तो सब कुछ बेकार है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 15, 2013 at 8:21am

आदरणीय वीनस जी,

आपने ईता दोष की बात कही तो मेरे मन में एक प्रश्न उठ रहा है अगर हम दर्दमन्द और गैरतमन्द काफिया लेते हैं तो यहाँ ईता-ए-जली होगा, क्या "करना" और "रहना" या फिर "गरजने" और "बरसने" लेने पर भी यह ऐब होगा? दोनो सूरत में "न" के साथ "आ" और "ए" स्वर निभाया गया है हालाँकि हर्फे-रवी हम काफिया नही है,

सादर, 

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