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बेमेल बंधन ..................डॉ० प्राची

अविश्वास !

प्रश्नचिन्ह !

उपेक्षा ! तिरस्कार !

के अनथक सिलसिले में घुटता..

बारूद भरी बन्दूक की

दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..

पारा फाँकने की कसमसाहट में

ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..

निशदिन जलता..

अग्निपरीक्षा में,

पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !

इसमें झुलस

बची है केवल राख !

....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !

और राख की नीँव पर

कतरा-कतरा ढहता  

राख के घरौंदे सा

बेमेल बंधन ! 

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Comment

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Comment by दिलीप कुमार तिवारी on September 12, 2013 at 9:39pm

आदरणीया प्राची जी  सुंदर रचना , बधाई

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 12, 2013 at 7:34pm

आ. प्राचीजी ,  बहुतों की यही व्यथा है, सुंदर रचना , बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:54pm

आदरणीया प्राची जी , बहुत बेहतरीन  रचना , अनुपम !! बधाई !!

Comment by Sarita Bhatia on September 12, 2013 at 5:35pm

सुन्दर प्रस्तुति ,बधाई प्राची जी 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 12, 2013 at 4:51pm

बेहद सुंदर अभिव्यक्ति , सच में एक अभिशाप की तरह होता है बेमेल बंधन , बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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