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मै आदमी हूँ / दिलीप कुमार तिवारी

 मै आदमी हूँ
सम्बेदंशील हूँ
मुझे  कई आदमी
कहलाए जाने वालों
ने   छला है I

छाछ फूककर  
पीता हूँ हर-बार
क्यों की मेरा मुह
दिखावे के गर्म दूध से जला है I I

कल्पनाओ का समंदर
मेरे मन में भी है
कुछ पाने की चाह में
जीवन की राह  में  तुमसे मिला है I I I

मुझे रोकना नहीं
टोकना नहीं तुम
बढने दो मेरे पैर
ये हमारी दुश्मनी बदल कर
दोस्ती का सिलशिला है I I I I

मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप कुमार तिवारी

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 8:06pm

आदरणीय दिलीप बेहद सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें कंटक त्रुटियों पर ध्यान दें.

Comment by annapurna bajpai on September 11, 2013 at 12:54pm

 मै आदमी हूँ 
सम्बेदंशील हूँ 
मुझे  कई आदमी 
कहलाए जाने वालों 
ने   छला है I  .............................. वाह!!!! आदरणीय दिलीप जी क्या बात कह दी आपने बहुत बढ़िया , लाजवाब । 

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