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रात भर सोया नहीं

बस सोचता रहा

कब काली रात जायेगी

रवि अपनी किरणें फैलाएगा


बहुत लम्बी रात थी

जो नहीं था उसे खोजता रहा

अंतहीन धुंध के खौफ से

डरता कांपता

बार-बार खुद से यही पूछता

क्या सफल हो पाऊंगा?

सुबह हुई

पर कोई नयापन नहीं

अचानक

चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा

एक भी पत्ते नहीं थे

शायद !मुझसे कह रहा था

धैर्य रखो बसंत आने तक।
*******************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 11:44am

बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी  //सादर  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 4, 2013 at 11:52pm

बहुत प्रभावशाली रचना, बधाई स्वीकारें राम भाई

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 7:11pm

बहुत बहुत  आभार आदरणीय आशुतोष मिश्र  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 7:11pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई राजेश कुमार जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 7:10pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई आशीष जी //सादर 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 4, 2013 at 5:53pm

बधाई हो राम जी,

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2013 at 5:01pm

चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा

एक भी पत्ते नहीं थे

शायद !मुझसे कह रहा था

धैर्य रखो बसंत आने तक।..इन पंक्तियों ने मुझे बेहद प्रभावित किया आपको ढेरों बधाई 

Comment by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 4:50pm

arti sundar bhav 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 2:12pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीया राजेश कुमारी जी उत्साह वर्धन करने के लिए  //सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2013 at 2:07pm

भाव सम्प्रेषण, प्रवाह अच्छा हो तो एक अतुकान्त  रचना भी वाह कहने को मजबूर कर देती है जो आपकी ये रचना कर रही है दिल से बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति  पर प्रिय रामशिरोमणि जी 

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