वंशीधर का मोहना, राधा-मुद्रा मस्त ।
नाचे नौ मन तेल बिन, किन्तु नागरिक त्रस्त ।
किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा ।
पाई रहा बटोर, धकेले लेकिन कुप्पा ।
बीते बाइस साल, हुई मुद्रा विध्वंशी ।
चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आपकी संवेदनशील दृष्टि के लिए बधाई.. .
सादर आदरणीय
बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति आदरणीय रविकर जी । बधाई ।
बहुत सुन्दर भाई श्री रविकर जी, बधाई -
रविकर तू बंशी बजा, नागिन की फुफकार
नाचे नौ मन तेल बिन,चले मस्त सरकार |
चले मस्त सरकार, मन मुग्ध होय मीरा
घाटे की सरकार, लगा जनता के चीरा
चलते अब ये चाल,देख चुनाव का चक्कर
मोहन का है राज, बजाये बंशी रविकर | - लक्ष्मण
अतिसुन्दर रचना, बधाई आदरणीय रविकर जी
आ0 रविकर भाई जी, अतिसुन्दर । हृदयतल से हार्दिक बधाई। सादर,
आभार
आदरणीय बंधुओं -
ati sundar rachna , badhai
बढ़िया है! विजय जी की प्रतिक्रिया से सहमत!
बहुत ही धांसू रचना है आदरणीय, सादर
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