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वजीरे आला आप भारी विरोध के चलते धैर्य रख इतने समय से शासन कर रहे है । आपके अधिकाँश मंत्रियों पर घोटाले सहित कई प्रकार के आरोप लग रहे है । कई मंत्रियों को तो स्तीफा भी देना पड़ा है । यहाँ तक की कई मामलो में तो न्यायालय ने भी तल्ख़ टिप्पणियाँ तक की है । तिरस्कार पूर्ण वचन बहुत दारुण होता है ।  यह कहते हुए युवराज ने राजनीति के गुर सीखने हेतु जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा- फिर भी आप यह सब सहन कारते हुए मौन एवं धैर्य रख कैसे शासन कर रहे है ?

वजीरे आला यह सब सुनकर कुछ देर मौन रहे । फिर बोले -

जब चारो और से घोर विरोध हो रहा हो, तो विरोध का सामना करने का दुस्साहस न कर, कुछ समाय मौन रहकर धैर्य रख हो रहे विरोध की उपेक्षा करते हुए विरोध शांत होने देना चाहिए । यह ध्यान रखना चाहिए कि आरोप-प्रत्यारोप के जरिये किसी बात का बतंगड़ न बने । मौन रहे और विरोध शांत होने दे ।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2013 at 9:31am

लघु कहांनी को पसंद कर मान बढाने की लिए आपका दिल से शुक्रिया श्री वीनस केसरी जी । सादर 

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 4:34am

जय हो
आपने तो गीता का सर प्रस्तुत कर दिया
मजा आ गया

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 11:28am

मौन साधना का अपना महत्व है, पर जब मौन को कमजोरी की ढाल बनते देखा तो कहानी  लिखने का मानस बना |

आपकी विद्वजनों की सराहना मिलने से कहानी की सार्थकता प्रमाणित हो गयी | आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय 

श्री सौरभ पाण्डेय जी, एवं श्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ला भ्रमर जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 11:22am

कहानी सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री शुभ्रांशु पाण्डेय जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 3:22am

वाह आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी वाह !

बहुत खूब !

बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 1, 2013 at 1:01am

आदरणीय लड़ी वाला जी व्यंग्य का पुट लिए आँखें खोलने को प्रेरित करता निशाना साधता अच्छा लेख काश उन की भी समझ कुछ आये तो आनंद और आये

जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by Shubhranshu Pandey on August 31, 2013 at 11:34am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाल जी, मौन के ले कर एक सुन्दर व्यंग्य है. बधाई...

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 30, 2013 at 7:24pm

आपकी सराहना से लघु कथा सार्थक हो गई, आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी एवं शुभ्रा शर्मा जी, सादर  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 30, 2013 at 7:21pm

लघु कहानी पसंद करने के लिए हार्दिक अभार आपका श्री जीतेन्द्र गीत" भाई 

Comment by shubhra sharma on August 30, 2013 at 11:38am

आदरणीय लडिवाला जी , मन (मौन)मोहन  (मोहित)हो गया , बहुत  खूब  

कृपया ध्यान दे...

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