For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बोलो नेहा ! इतनी उदास क्यों हो ?

पर सूनी आँखों में कोई ज़वाब न देख, अपने हक के लिए कभी एक शब्द भी न कह पाने वाली दिव्या,  अचानक हाथ में प्रोस्पेक्टस के ऊपर एडमीशन फॉर्म के कटे-फटे टुकड़े लिए, बिना किसी से इजाज़त मांगे और दरवाजा खटखटाए बगैर, सीधे ऑफिस में घुसी और डीन की आँखों में आँखे डाल गरजते हुए बोली “देखिये और बताइये– क्या है ये? आपकी शोधार्थी नें एडमीशन फॉर्म के इतने टुकड़े क्यों कर डाले? दो साल से सिनॉप्सिस तक प्रेसेंट नहीं हुई, क्यों ? इतना कम्युनिकेशन गैप? आखिर समय क्यों नहीं देते आप अपने शोधार्थियों के कार्य को? एक ज़िंदगी के खत्म हो जाने के ज़िम्मेदार बनेंगे क्या आप ?”

और डीन की जुबान से बस इतना ही निकला “आप हमारी छात्रा नहीं हैं, अब इस बारे में हम आपसे क्या बात करें...”

रासलीलाओं पर तत्कालीन विराम के साथ ही महाशय होश में आ चुके थे और अगली सुबह नेहा के लिए एक नया सवेरा थी.

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 886

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 11:29pm

आदरणीया प्राची जी कसावट से भरपूर संदेश परक लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on August 24, 2013 at 7:55pm

सन्देश देती, किसी के लिए आवाज़ उठाती, और किसी को आवाज़ देती

 इस सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक साधुवाद, आदरणीया प्राची जी।

 

सादर,

विजय

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 24, 2013 at 1:12pm

सत्य कहा आपने दीदी शांति से चुपचाप रहने से समस्याएं समाप्त नहीं होती लड़ना पड़ता है आपने हक़ के लिए सत्य के लिए बेहद शिक्षाप्रद लघु कथा दी मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:33am

चुप रहना अपराध है। हमारा एक कदम कई समस्याओं के निराकरण का कारण बन सकता है।
बहुत ही सुंदर लघु कथा। आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2013 at 10:14am

किसी भी जुर्म को सहना या किसी को सहते देखना भी बड़ा जुर्म है कथा की नायिका द्वारा उठाया गया ये हिम्मत भरा कदम सच में प्रेरणा दायक है बहुत अच्छी लघु कथा ,बधाई आपको प्रिय प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2013 at 4:53pm

आ० अभिनव अरुण जी 

लघुकथा पर आपके बहुमूल्य प्रोत्साहन के लिए आपकी आभारी हूँ 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2013 at 4:47pm

प्रिय गीतिका जी 

लघुकथा आपको सन्देश सम्प्रेषण में सार्थक लगी और आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रया मिली

आपका हृदय से धन्यवाद  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2013 at 4:44pm

लघुकथा के सन्देश की सराहना के लिए आपकी आभारी हूँ आ० गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2013 at 4:43pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी 

कई बार इंसान अपने पर होते अत्याचार को साफ़ समझ ही नहीं पाता... और अवसाद, हीन भावना, डिप्रेशन में इतना डूबता चला जाता है कि परमुखापेक्षिता की सीमाएं भी पार हो कर आत्महत्या तक पहुँच जाती हैं.. ऐसे ही वीभत्स कथ्य को प्रस्तुत करने की कोशिश की है

मैत्री के अटट निःस्वार्थ आत्मीय अनुबंध को भी प्रस्तुत करना चाहा है इस सन्देश के साथ कि सिर्फ एक कदम का ही फासला होता है....और वो कदम उठाने में देर नहीं करनी चाहिये.

आपको मेरी ये कोशिश सार्थक लगी और आपका मुखर अनुमोदन मिला, यह वास्तव में बहुत उत्साहवर्धक है 

सादर धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2013 at 4:36pm

प्रिय राम शिरोमणि जी 

लघुकथा के सन्देश को पसंद करने के लिए आभार.

ईश्वर अक्सर मित्र का ही स्वरुप धर आते हैं..मदद करने के लिये :)))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service