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वंजर धरती को जोते हम

डाल उर्वरक हरा बनाये

सालों साल वृथा मिटटी जो

आज हँसे लहके लहराए !

 

कुंठित मन को कुंठा से भर

दुखी रहें क्यों हम अलसाये

कुंठित बीज हरी धरती में

कुंठित फसल भी ना ला पायें !

 

नाश करें खुद के संग धरती

वंजर  वृथा ह्रदय अकुलाये

जोश उर्जा क्षीण हो निशि दिन

ख़ुशी हंसी मन को खा जाए !

 

सहज सरल भी चुभें तीर सा

बिन बात बतंगड़ बनती जाए

घुन ज्यों अंतर करे खोखला

दिखता कुछ होता कुछ जाए !

हरे वृक्ष बन ठूंठ सडे कुछ

क्या जीवन , क्यों जीवन पाए ?

आओ तम से उबरें, भरें उजास -

ऊर्जा ! कूदें उछलें नाचें गायें !

 

हो आनंदित मन जब अपना

हो साकार तभी सब सपना

साधें लक्ष्य एकलव्य बन

अर्जुन भीष्म सा करें चित्त हम !

 

कुरुक्षेत्र हो या लंका रण

लिए सीख मन मन्त्र बढ़ें हम !

 

जित जाएँ उत राह बनायें

खुद तो चलें सभी बढ़ पायें

मिले हाथ से हाथ कदम तो

हो जय घोष विजयश्री आये !

----------------------------------

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ' भ्रमर ५'

प्रतापगढ़ उ प्र

(कुल्लू हिमाचल )

रचना -बरेली -मुरादाबाद मार्ग

३.-३. ४ ५ लौह पथ गामिनी में

२७ .० ७  -२ ० १ ३

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:25pm

जीवन की राहों में आगे बढने के लिए, मन में पनपने वाली कुंठा व जड़ता को उखाड़ फेंकना, आवश्यक है...

आदरणीया विनीता जी सत्य वचन आप के
रचना पर आप से प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी .आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:23pm

प्रिय गिरिराज जी स्वागत है आप पधारे और रचना पर आप से प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी .आभार 
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:19pm

प्रिय शिरोमणि जी रचना की प्रस्तुति और इसके भाव आप के मन को छू सके ख़ुशी हुयी .आभार रचना पर प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:19pm

प्रिय जितेन्द्र जी रचना के शब्द संयोजन आप को भाये ख़ुशी हुयी .आभार रचना पर प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:17pm

प्रिय अभिनव जी जिन पंक्तियों को आप ने सराहा वे बड़ी कारगर हैं और बदलाव लाने में सक्षम भी .आभार रचना पर प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:16pm

प्रिय अनंत जी समय बहुत कम मिल पाता है फिर भी आप सब की प्यारी रचनाओं का रसास्वादन करने पहुँचने की कोशिश करता हूँ ..आभार रचना पर प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2013 at 11:15pm

प्रिय केवल जी अपना स्नेह बरसाते रहें यों ही कुछ समय दे ...आभार रचना पर प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५

Comment by Vinita Shukla on August 23, 2013 at 1:48pm

"जित जाएँ उत राह बनायें

खुद तो चलें सभी बढ़ पायें

मिले हाथ से हाथ कदम तो

हो जय घोष विजयश्री आये !" सच है; जीवन की राहों में आगे बढने के लिए, मन में पनपने वाली कुंठा व जड़ता को उखाड़ फेंकना, आवश्यक है. बधाई भ्रमर जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2013 at 9:51am
एक प्रवाहमान रचना के लिये आपको दिल्री बधाई, सुरेन्द्र भाई !!!
Comment by ram shiromani pathak on August 22, 2013 at 9:47pm

आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी, बहुत  सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई स्वीकारे/////////

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