For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिजवान को पुलिस ने किसी मामले में पकड़ कर थाने में बिठा दिया। उसने थानेदार से अपनी माँ से फोन पर बात करवाने की प्रार्थना की। 
थानेदार बोला  … माँ का नाम और नंबर दो 
जी  … मंजूषा  . 
क्या !
ये कैसे हो सकता है !! ये तो हिन्दू है और तुम   …. 
जी! आप फोन तो लगाइए माँ को    …रिजवान ने जिद की। 
थानेदार ने फोन लगाया  …. मंजूषा जी ! क्या रिजवान आपका बेटा  है?
जी !सहजता से जवाब मिला। 
मगर हुआ क्या है ? … मंजूषा ने पूछा। 
ये आपका बेटा मार पीट  के आरोप में थाने में लाया गया है। 
मंजूषा तुरंत थाने  पहुंची। 
अरे आप !
मंजूषा को देखते ही थानेदार और शिकायतकर्ता  सहित सब लोग चौंक पड़े। 
उनके सामने प्रसिद्ध समाज सेविका खड़ी थी.
आते ही मंजूषा ने शिकायतकर्ता से बड़े ही प्यार से बात की और रिजवान से माफ़ी भी मंगवा दी। 
मामला बिना किसी कार्यवाही के वहीँ ख़त्म हो गया। तब तक रिजवान  के असली माँ बाप भी वहां आ (जिन्हें अब तक मंजूषा जी ने कुछ भी नहीं बताया था )
ठगे से खड़े थानेदार ने रिजवान से आखिर पूछ ही लिया की माज़रा क्या है 
बात काटते हुए मंजूषा जी बोली  … समाज की सेवा में जुटे लोगो के लिए समाज का हर व्यक्ति उसका सगा होता है ,इस नाते रिजवान  मेरा बेटा  ही हुआ और वैसे भी ये मेरे बेटे बंटू का खास दोस्त है   … 
थानेदार ने एक कड़क सलूट मंजूषा जी को ठोंक दिया। 
अरे!रिजवान आज तो ईद है 
कहाँ है मेरी ईदी ?  …. मंजूषा रिजवान के सर पे हाथ फेरते हुए बोली। 
झर झर बहते आंसुओं के बीच रिजवान बोला  …. अम्मी आपने मेरे लिए जो आज किया है वही तो मेरे लिए सबसे बड़ी ईदी है   …. ईदी तो आपने मुझे दी है आज। …. 
---------------------------------------------------------------------------------------------------------
अविनाश बागडे 
-----------------------------------------------------------------------------------
(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on August 27, 2013 at 2:10pm

आभार ! इस लघुकथा को पुन: प्रकाशित करने का प्रयास रहेगा सौरभ पांडे जी 

Comment by AVINASH S BAGDE on August 27, 2013 at 2:08pm

संप्रेषणीयता का दोष हुआ ji....kahi kuchh kam rah gaya 

aabhar...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 12:31am

रिज़वान के पकड़े जाने का हल्का भी इशारा भी होता तो कथा में उभर आये शून्य को स्वर नहीं मिलते. संप्रेषणीयता का दोष हुआ न, आदरणीय अविनाश भाईजी ?

तब मंजूषा का किया गया प्रश्नों की सीमाओं में न आता.

बाकी, आपके प्रयास पर मैं आपका सादर अभिनन्दन करता हूँ.

सादर्

Comment by AVINASH S BAGDE on August 25, 2013 at 9:58pm

"समाजसेवा की आड़ में उनका यही धंधा '..

समाज का चेहरा आज इतना विद्रूप हो गया है कि आपका क्या मेरा मन भी इसके अलावा कुछ सोच ही नहीं सकता ,वस्तुत: ये एकदम सच्ची घटना है।  इस लघुकथा पे निगेटिव व पौसिटिव दोनों ही रिमार्क आये है 

विनीता शर्मा जी,जितेन्द्र 'गीत' साहब ,गिरिराज भंडारी जी,शुभ्रांशु पाण्डेय जी ,गीतिका 'वेदिका' जी और आदरणीय गणेश बागी जी ,सभी का आभार 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2013 at 6:09pm

गुनाहगार जैसे समाजसेविका को माँ बोलता है ऐसा लग रहा है जैसे समाजसेवा की आड़ में उनका यही धंधा हो, शायद आज समाज सेवा का अर्थ यही रह गया । 

Comment by वेदिका on August 21, 2013 at 2:58pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी का कहना एकदम सही है,

और कथा अपने मूल उद्देश्य के अलावा कही और भी इंगित कर रही है 

// आते ही मंजूषा ने शिकायतकर्ता से बड़े ही प्यार से बात की और रिजवान से माफ़ी भी मंगवा दी। मामला बिना किसी कार्यवाही के वहीँ ख़त्म हो गया।//

सादर !!

Comment by Shubhranshu Pandey on August 21, 2013 at 12:41pm

आ. अविनाश जी, मामले का थाने तक जाना और फ़िर शिकायतकर्ता का होना, ये रिजवान को गुनाहगार बनाता है,

अन्त के हिसाब से कहीं कुछ छूट रहा है........

शायद....

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2013 at 11:45am

अति सुन्दर लघुकथा !!!! हार्दिक बधाई आपको !!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 3:51am

सच! बड़ा सुकून मिला लघुकथा पढकर, बधाई आदरणीय अविनाश जी

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:57pm

मजहब की संकीर्णता से, ऊपर उठाने वाली, सुंदर सोच को प्रतिबिंबित करने वाली लघुकथा. बधाई आदरणीय.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service