सराहे और पूजे जाने के लिए एक सोच है ,
दर्शन है एक ह्रदय है ,
समर्पण है ऐसी कोरी किताब नहीं,
कि गाहे -बगाहे. लिख दे कहानी कोई,
एक अंतर्मन है.जिसमे करते स्वयं प्रभु रमण हैं
उसके सीने में भी ,
दिल है धड़कता उसके जज्बातों में भी है कोई बसता,
एक मुकम्मल सा फ़रिश्ता,
जुड़ा-जुड़ा सा हो जिससे कोई रिश्ता
जिसकी नजदीकी सारे बंधन खोले
जैसे नए पंख उड़ने को पर तौले,
कोई कर्णप्रिय बात मद्यम सुर में बोले
मन में छुपे अहसास कोई हौले से छूले
जो न कवि की कल्पना, न शायर की गजल हो,
स्वयं में खिलता स्वर्णकमल हो
खुद में व्यक्त-अभिव्यक्त, संपूर्ण सकल हो,
धागों, अनुबंधों की सीमाओं से परे,
उस निराकार में जिसका विलय हो
अल्हड उन्मादिता का न हो दमन नए सुर,
भावों में हो जिसका सृजन
सागर की गहरे में मोती सा जिसका मन
अपना चेहरा दिखाई दे ,ऐसा है वो दर्पण
Comment
bahut dhanyavad preetam ji............thoda prayas hai man ke bhavon ko kagaj par utarne ka............apki prashansha aur utsahvardhan ke liye dil se shukriya.
aapke pehle blog ka dil se swagat hai anu shree jee......
kavita ke maadhyam se saari baatein keh daali aapne....bahut hi badhiya rachna hai.....
aage aur bhi rachnaon ka intezaar rahega.......aur is rachna ke liye bahut bahut badhai....aur aage aane wali rachnaon ke liye shubhkamnayen
आदरणीया अनु श्री जी, सर्वप्रथम ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहले ब्लॉग का दिल से स्वागत है, साथ ही बेहतरीन काव्य कृति पर मुबारकवाद भी |
खुद में व्यक्त-अभिव्यक्त, संपूर्ण सकल हो,
धागों, अनुबंधों की सीमाओं से परे,
उस निराकार में जिसका विलय हो
अल्हड उन्मादिता का न हो दमन नए सुर,
खुबसूरत शब्दों का प्रयोग रचना को बेहतरीन बना रही है, बहुत बहुत बधाई ...इस खुबसूरत काव्यकृति पर
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