For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिया द्वार पर जूझ रहा

कितने कितने सूरज चमके

पर अँधियारा शेष रहा

तेरे मेरे मन के अंदर

इक संशय फल फूल रहा।।

 

सरपत के ढेरों झाड़ उगे

तन छू ले कट जाता है

इन बबूल के काँटों से भी

भीतर तक छिल जाता है

सावन की बौछारों में भी

मन उपवन सब सून रहा।।

 

तुम मिलते हो मुझको जैसे

इक गुजरी तरुणाई सी

भाव खिलें डाली पर कैसे

वह रूखी मुरझाई सी

साज संवार व्यर्थ रहा सब

धूल भरा यह रूप रहा।।

 

चिड़ियों ने भी पंख समेटे

हवा हुई अनजानी सी

नदिया की लहरें व्याकुल हैं

मछली कुछ अकुलानी सी

तूफानों के इस मौसम में

दिया द्वार पर जूझ रहा।।

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 10:24am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 5, 2013 at 10:03am

"चिड़ियों ने भी पंख समेटे

हवा हुई अनजानी सी

नदिया की लहरें व्याकुल हैं

मछली कुछ अकुलानी सी

तूफानों के इस मौसम में

दिया द्वार पर जूझ रहा।।"...........बहुत ही गहरे भाव समेटे हुयी पंक्तियाँ,

बहुत सुंदर रचना, आदरणीय बृजेश जी, हार्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 9:28am

आदरणीय नीरज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Neeraj Nishchal on August 5, 2013 at 8:47am

तूफानों के इस मौसम में

दिया द्वार पर जूझ रहा।

बहुत ही गहरी बात
कह दी आपने .......

Comment by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 9:15pm

आदरणीया विनीता जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Vinita Shukla on August 4, 2013 at 8:04pm

सुंदर भावयुक्त, प्रभावी अभिव्यक्ति. बधाई.

Comment by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 7:11pm

आदरणीय माथुर जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by D P Mathur on August 4, 2013 at 7:03pm

चिड़ियों ने भी पंख समेटे

हवा हुई अनजानी सी

नदिया की लहरें व्याकुल हैं

मछली कुछ अकुलानी सी

तूफानों के इस मौसम में

दिया द्वार पर जूझ रहा।।

आदरणीय नीरज सर प्रणाम , सदा की तरह सुन्दर पंक्तिँयों को समेटे आपकी इस रचना के लिए आपको बधाई !   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service