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हे ! इस जगदीश

(1)

 

ये ईश का दरबार है ,

खुश रंग गलीचे बिछे है ।

अंबर का है तम्बू तना है ,

रवि चन्द्र तारे जगमगाते ।

कैसी ये मौजे बहार है ॥

 (2)

नदियों मे बहता नीर है ,

वायु का वेग गंभीर है ।

सागर की है अनुपम छटा ,

जहां रत्न का  भरा भंडार है।।

(3)

न्यायकारी निर्विकारी ,

तू जगत करतार है ।

तेरी महिमा अति अगम ,

नहीं जिसका पारावार है ॥

(4)

इकरार नहीं पूरा किया ,

ज्यो किया गर्भ मे इकरार,

हे ! ईश जगदीश ये मन ,

अभी तक ये सोच पछता रहा ।।

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

 

 

 

 

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Comment by annapurna bajpai on July 8, 2013 at 1:35pm

आदरणीय गुरु जी , संचार व्यवस्था ध्वस्त होने के कारण काफी समय से ब्लॉग पर आगमन न हो सका , आज ही आपकी टिप्पणी पढ़ी । बहूत आभार आपका , आपने इकरार शब्द के प्रयोग के विषय मे पूछा है , यहाँ मै स्पष्ट करना चाहूंगी , जब तक मनुष्य का जन्म नहीं होता तब तक वह ईश्वर से दिन रात प्रार्थना करता है कि हे प्रभु इस भव बंधन से उबारिए इस जन्म मे जरूर आपका ध्यान करेंगे । ये इकरार वह प्रभु से करता है । यहाँ इकरार शब्द उर्दू का है मैंने यहाँ वादा - हिन्दी का शब्द लगाया था परंतु कुछ जमा नहीं । इसलिए लगा दिया । यदि ये त्रुटि पूर्ण है तो मै क्षमा चाहूंगी । और आपसे विनम्र प्रार्थना है कि कोई यथोचित शब्द बता दें ।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 5:29am

भाव पंक्तियों के लिए सादर बधाइयाँ, आदरणीया. नियंता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुआ है.

इकरार शब्द को कैसे प्रयुक्त किया है आपने ?

कृपया ध्यान दे...

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