(1)
ये ईश का दरबार है ,
खुश रंग गलीचे बिछे है ।
अंबर का है तम्बू तना है ,
रवि चन्द्र तारे जगमगाते ।
कैसी ये मौजे बहार है ॥
(2)
नदियों मे बहता नीर है ,
वायु का वेग गंभीर है ।
सागर की है अनुपम छटा ,
जहां रत्न का भरा भंडार है।।
(3)
न्यायकारी निर्विकारी ,
तू जगत करतार है ।
तेरी महिमा अति अगम ,
नहीं जिसका पारावार है ॥
(4)
इकरार नहीं पूरा किया ,
ज्यो किया गर्भ मे इकरार,
हे ! ईश जगदीश ये मन ,
अभी तक ये सोच पछता रहा ।।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय गुरु जी , संचार व्यवस्था ध्वस्त होने के कारण काफी समय से ब्लॉग पर आगमन न हो सका , आज ही आपकी टिप्पणी पढ़ी । बहूत आभार आपका , आपने इकरार शब्द के प्रयोग के विषय मे पूछा है , यहाँ मै स्पष्ट करना चाहूंगी , जब तक मनुष्य का जन्म नहीं होता तब तक वह ईश्वर से दिन रात प्रार्थना करता है कि हे प्रभु इस भव बंधन से उबारिए इस जन्म मे जरूर आपका ध्यान करेंगे । ये इकरार वह प्रभु से करता है । यहाँ इकरार शब्द उर्दू का है मैंने यहाँ वादा - हिन्दी का शब्द लगाया था परंतु कुछ जमा नहीं । इसलिए लगा दिया । यदि ये त्रुटि पूर्ण है तो मै क्षमा चाहूंगी । और आपसे विनम्र प्रार्थना है कि कोई यथोचित शब्द बता दें ।
भाव पंक्तियों के लिए सादर बधाइयाँ, आदरणीया. नियंता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुआ है.
इकरार शब्द को कैसे प्रयुक्त किया है आपने ?
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