For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तक ~~

एक~
*
नफ़रत जितनी उतना प्यार,

इन पर अपना क्या अधिकार,

एक बिंदु पर पड़ा ठहरना 

सरहद को करना मत पार !

दो~
*
ये कैसी इसकी रफ़्तार ,
बहुत प्यार धीमा है यार ,

सीमाएं कुछ उनकी हैं तो 

अपनी भी सीमा है यार !

तीन~
*
नफरत छोडो ,प्यार लुटाओ 

खुशियाँ और सनेह बाँट दो ,

दिखें अगर मजहबी दिवारें 

सीमाएं सब काट-छांट दो !

चार ~
*
ये आपकी नज़र है और मित्र दुआ है ,
आपकी दुआ से ही आकाश छुआ है,

जब गिरा कहीं मै कभी ठोकरें खाकर 

अनमोल प्यार आपका नसीब हुआ है !

पांच ~

*
लौट आया जो कल गया कोई ,
दांव क्या खूब चल गया कोई ,

दोस्ती अजनबी से की हमने 

चित्र फिर से बदल गया कोई !

________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ                   (मौलिक और अप्रकाशित रचना )


Views: 467

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 3, 2013 at 9:44pm

मुक्तक अच्छे लगे। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on July 3, 2013 at 9:35pm

आपको इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई!
आपसे एक निवेदन करना चाह रहा था कि इस मंच पर दूसरे रचनाकारों को आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है इसलिए कुछ समय निकालकर उनकी रचनाओं पर अपना मार्गदर्शन अवश्य दिया करिए।
सादर!

Comment by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 3:12pm

नफ़रत जितनी उतना प्यार,

इन पर अपना क्या अधिकार,

एक बिंदु पर पड़ा ठहरना 

सरहद को करना मत पार ! sunder panktiya

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 2:15pm

मित्र Laxman Prasad Ladiwala जी ,आपका हार्दिक आभार सराहना के लिए !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 2:14pm

आभार आपका Dr.Prachi singh जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2013 at 8:55am

अपनत्व के विविध पहलुओं पर सुन्दर मुक्तक आदरणीय प्रो० विशम्भर शुक्ल जी 

तीसरे मुक्तक पर एक बार पुनः गौर कर लें. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 2, 2013 at 7:18pm

सभु मुक्तक सुन्दर और सार्थक है | हार्दिक बधाई श्री विशम्भर शुक्ल जी | सादर 

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:09pm

आपका बहुत बहुत आभार आपकी  सराहना से बल मिलता है सम्मान्य राजेश कुमारी जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 3:08pm

सभी मुक्तक एक से बढ़कर एक हैं आदरणीय आपको हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service