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क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

जिसका विधान न हो!

न अनुनय के शब्द रहे 

तेरी प्रार्थना रिक्त रहे 

और प्रार्थी का तुझ

सम्मुख; कोई मान न हो 

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

धूप आई झुलसाती 

चाँद रात गल जाती 

मृतक देह का फिर भी 

क्यों अवसान न हो   

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!  

दीपशिखा सा चिर जलना 

अंध प्रश्न का तो हल ना 

उस अनंत अविधि में भी 

कुछ समाधान न हो 

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …! 

चरणध्वनी गुम होती सी 

रक्त प्रवाहिनी सोती सी 

रैना मेरे घर ठहरी की 

कोई विहान न  हो  

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

पदचिन्हों की आहट पाती 

राह स्वयं तो न चल पाती 

कोई चले तो कैसे की 

पग के निशान न हो 


क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!  

दृष्टी नित होती धुंधली 

बीते कल में थी उजली 

घना छा रहा धुंध किन्तु 

नव ज्योतिर्मान न हो 


क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …! 

                      गीतिका 'वेदिका'

मौलिक प्रकाशित  

 

 

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Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 5:17pm

वाह क्या कहने आदरणीया गीतिका जी बहुत ही सुन्दर //हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on June 26, 2013 at 5:13pm

सुन्दर रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें...........................

Comment by रविकर on June 26, 2013 at 4:30pm

शब्दों का सुन्दर सामंजस,

भावो को भी बढ़िया ढाला -
पंक्ति पंक्ति से टपके है रस,

सचमुच यह अंदाज निराला ||


बधाइयां आदरणीया-

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 2:59pm

आदरणीया गीतिका जी बहुत ही सुन्दर सुकोमल भाव बड़ी ही सहजता और सरलता से लिखी है आपने ये रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by shalini rastogi on June 26, 2013 at 2:38pm

सुन्दर भावों से युक्त रचना .. बधाई गीतिका जी !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 1:53pm
आदरणीया...गीतिका जी, आपने सुंदर व भावनाओं में डूबी हुई, व्यथा की परिकाष्ठा को समझाती पंक्तियां प्रस्तुत की है! "तहे दिल से शुभकामनाऐं...स्वीकार कीजीऐ

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