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उत्तराखंड की तबाही (आल्हा छंद पर आधारित )

ऐसी  प्रलय भयंकर आई ,होश मनुज  के दियो उड़ाय   

काल घनों पर उड़ के आया  ,घर के दीपक दियो बुझाय 

पिघली धरा मोम  के जैसे ,पर्वत शीशे से चटकाय 

ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद ,धर्म कहाँ कोई बतलाय 

बच्चे बूढ़े युवक युवतियां ,हुए जलमग्न कौन बचाय 

शिव शंकर  आकंठ डूबे  , चमत्कार नाही  दिखलाय 

केदारनाथ शिवालय भीतर,ढेर लाश के दियो लगाय 

मौत से लड़कर बच गए जो ,उनकी पीर कही ना जाय 

नागिन सी फुफकारें नदियाँ ,निर्झर  गए खूब पगलाय 

पर्वत हुए खून के प्यासे, मिलकर सभी तबाही लाय 

गौरी कुंड  में लगी समाधि ,हरिद्वार में बहकर आय 

उस पर ये जल्लादी मानव ,लूट शवों पर रहे मचाय 

कुपित  धरा  के बाण चले जब ,उसके वार सभी बिसराय 

स्वार्थी लोभी भूखे मानव ,नहीं सुने तब उसकी हाय 

कुदरत ने जो मारी कंकड़ , घड़ा पाप का फूटा जाय 

जैसी करनी वैसी भरनी , कुदरत सुनो रही समझाय

क्षीण हुआ जब उर क्रंदन स्वर ,पल भर को रवि बाहर आय 

भेजी किरणे आमंत्रण को , सुप्त प्रशासन दियो जगाय 

हंस यान पर बैठ प्रशासक,सर्वनाश चित्र देखन आय 

खबर नहीं कुछ सोच रहे हों , कैसे वोट बटोरे जाय    

उजड़ा उत्तर मान चित्र का ,फिर भी बात समझ ना पाय 

सत्ता बैठी आँख मूंदकर ,राष्ट्रिय  त्रासदी नहीं लिखाय      

************************************************** 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2013 at 10:24am

इस प्रस्तुति पर काव्य विधान की बात न कर कथ्य और उसकी प्रस्तुति पर चर्चा उचित होगा.

यह अवश्य है, आदरणीया, कि जिस विभीषिका की मार उत्तरांचल की जनता झेल रही है वह सामान्यतया पहाडों के स्वयं के कारण नहीं आती है. यह सब हमारे विकास-मॉडल की देन है जिसे हमने भौगोलिक संतुलन की परवाह किये बग़ैर उसे थोप दिया है. आज कितने लोग सुंदर लाल बहुगुणा को जानते हैं या याद करते हैं जिसने इस तथाकथित विकास से होने वाली बरबादी को अंदाज़ा लगा कर प्रारंभ में ही इसका विरोध करना शुरु किया था. निकृष्ट स्वार्थ, अदूरदृष्टि तथा अकूत संपत्ति के सामने सब मौन हो गये.

अब प्रकृति विनाशक दिख रही है तो हमें रोने-पीटने का कोई अधिकार नहीं है.  बस चुपचाप सिर झुकाकर अपनी गलतियों को मानते हुए हम आगे की पीढ़ियों के लिये उत्तरदायी बनें. आज की दुःख की घड़ी में संवेदना के स्वर पहाड़ के पुत्रों-पुत्रियों के लिए निकल रहे हैं जिनने वाकई सबकुछ खोया है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 9:56am

आदरणीय  जीतेन्द्र जी दिल से आभारी हूँ  मेरी प्रस्तुति पर अपने विचार प्रकट करने हेतु |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 9:55am

आदरणीय जवाहर लाल जी आपका हार्दिक आभार मेरी प्रस्तुति पर विचार प्रकट करने हेतु |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 9:54am

प्रिय सखी  डॉ नूतन जी इस आपदा में हम सब एक साथ हैं जो चले गए उनके जाने का गम जो अभी तक फंसे हुए हैं उनकी चिंता ,मन व्यथित है किसको ज्यादा बयाँ करूँ बस कुछ कहते नहीं बनता आपका हार्दिक आभार मेरी प्रस्तुति पर विचार प्रकट करने हेतु 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 24, 2013 at 8:33am
आदरणीया..राजेश कुमारी जी, आपकी रचना में वर्तमान में भीषण आपदा जो उत्तराखंड में हो रही है, पूर्ण रूप से प्रस्तुत है! .....
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 7:35am

आदरणीया, सादर अभिवादन!

आपने आल्हा धुन पर सत्य सत्य बयां कर दिया है ... बड़ा ही ह्रदय विदारक दृश्य हैं वहाँ के और वैसे ही हम सब हृदयहीन होते जा रहे हैं! बाकी आपने सबकुछ कह दिया है!

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 23, 2013 at 9:36pm

राजेश जी... आपने इस आपदा के हर पहलू,  दुःख को बखूबी उतार लिया है और राजनीती जो चलती है आपदा के बाद उसका भी चित्रण है... आप बहुत सुन्दर लिखती है... किन्तु अभी मन बहुत दुखी है... आपको मेरा नमन ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2013 at 8:59pm

हार्दिक धन्यवाद प्रिय महिमा श्री |

Comment by MAHIMA SHREE on June 23, 2013 at 8:55pm

सही कहा दी जितना भी बयां किया जाए कम हैं .. जिनके सगे सम्बन्धी इस आपदा में अपनी जान गवां बैठे है उनकी क्षतिपूर्ति तो कोई नहीं कर सकता .. बहुत ही अच्छी बात है आप कुछ कर सकने में सक्षम है अपनी संस्था के माध्यम  से .. मेरी शुभकामनाएं आपसभी के साथ हैं ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2013 at 8:49pm

प्रिय महिमा श्री रचना के मर्म ने आपको छुआ लिखना सार्थक हुआ ये लिख कर सच में मैंने खुद को हल्का महसूस किया बहुत दिनों से उत्तराखंड वासीयों की हालत प्रशासन की ढील पढ़ भी रही थी सुन भी रही थी अपने वश में जितना है अपनी धाद और उमा  संस्था के माध्यम से उन लोगों के लिए जो कुछ बन पड़  रहा है कर रही हूँ ये इतना दुखद है की बयाँ करने के लिए शब्द नाकाफी हैं |

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