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मेरे द्वारा हल्द्वानी आयोजन में प्रस्तुत की हुई नज्म/गीत

जख्म कांटो से खायें  हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता 

इश्क़े सफीने  बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता 

 

तुम   बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी  

 हुए सब अपने पराये हैं हमे  सच्चाई  छुपाना नहीं आता 

 

किसी ने दिल से निकाला ,  किसी ने राह में फेंका 

सर पे हमने बिठाए हैं हमे ठोकर से हटाना नहीं आता    

 

 कभी  ना  बेरुखी भायी   कभी ना नफरतें पाली 

दिलों में ही घर  बसाए हैं हमें महलात बनाना नहीं आता 

 

शहर में  धर्मों   के  भूसों   के  बड़े ढेर लगे हैं   

क्यों वो माचिस थमाए हैं  हमें चिंगारी लगाना नहीं आता 

 

जहाँ में  ईंटें भी देखी  सामने फर्ज भी देखे  

प्यार के सेतु बनाये हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता  

 

निज नस नस में बसी देश की माटी  की है खुशबू  

जब चाहे परदेस में जाएँ हमे स्वदेश भुलाना नहीं आता  

 

क्या होती है आजादी ,उनके परों  पे लिखा है  

दुखी पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना  नहीं आता  

 

'राज' ने जीत भी देखी औ  कभी हार भी देखी 

लम्हे दिल में छुपाये हैं हमें दुनिया को जताना नहीं आता 

************************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 6:12pm

ब्रजेश नीरज जी आपको नज्म पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपको वहां न देखकर अफ़सोस तो हमे भी हुआ । 

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 6:06pm

आदरणीया बहुत सुन्दर! काश! मैं आयोजन में सम्मिलित हो पाता और इसका सस्वर पाठ सुन पाता। अफसोस फिर ताजा हो गया।
आपको हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना के लिए!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 1:40pm

हार्दिक आभार डॉ राज जी |

Comment by DrRaaj on June 24, 2013 at 1:37pm

क्या बात है अति सुंदर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 1:00pm

प्रिय गीतिका जी  मैं खुशनसीब हूँ की मुझे इतने अच्छे साहित्य की गंभीरता को समझने वाले श्रोता और दर्शक /मित्र मिले आपके साथ उन सभी की सराहना की ऋणी हूँ ,ऐसे पल कभी भुलाए नहीं जा सकते तहे दिल से शुक्रिया । 

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 12:48pm

बहुत खूब गजल की रचना की आपने आदरणीया!

तुम   बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी  

 हुए सब अपने पराये हैं हमे  सच्चाई  छुपाना नहीं आता 

 

हम खुश नसीब है हमने इस गजल को सस्वर सुना है :)))

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 12:47pm

आदरणीय बसंत  नेमा जी नज़्म  आपके दिल को छू सकी मेरे लेखन को सार्थकता मिली तहे दिल से आभार |

Comment by बसंत नेमा on June 24, 2013 at 12:40pm

बहुत ही सुन्दर नज्म, नज्म की  हर पंक्ति  दिल मे उतर गई सीधी ..... बिना किसी रुकावट के ..... बधाई हो 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 11:58am

प्रिय अरुन हार्दिक आभार आपको नज्म पसंद आई हल्द्वानी में जो नहीं आये थे उन सब को हमने भी मिस किया बहुत अच्छा आयोजन था 

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 11:52am

आदरणीया बहुत ही बेहतरीन नज्म लिखी है आपने काश सस्वर सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो पाता, खैर इस सुन्दर नज्म हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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