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सच

सच एक सवाल हो गया

झूठ का धमाल हो गया

कमाल हो गया, कमाल हो गया

नोट है तो वोट है

हर चीज में खोट है

चोट पर चोट है, चोट पर चोट है

धूप है छाँव है

अनकहे,अनछुए घाव ही घाव हैं

नोचता ,कचौटता मन को मसौसता

राह का पता नही ढ़ूढ़ता फिर रहा

कोई तो बता दे

ये सच कहाँ रहता है

 

 

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by ram shiromani pathak on June 15, 2013 at 7:20pm

आदरणीया सुंदर अभिव्यक्ति//बधाई प्रज्ञा जी!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 14, 2013 at 4:23pm

आज सच सचमुच एक सवाल बनकर रह गया है!

Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 11:50am

सजीव अभिव्यक्ति.....बधाई

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 12:28am

बहुत सुंदर प्रस्तुति / सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 13, 2013 at 11:08pm
आदरणीया...सुंदर प्रस्तुतिकरण..
Comment by Abid ali mansoori on June 13, 2013 at 3:15pm
कोई तो बता दे यह सच कहां रहता है!
सच मेँ सच आज गुमनाम सा हो गया है जिसे हर दिल मेँ जिन्दा रखने की जरूरत है,बधाई स्वीकारेँ आदरणीया प्रज्ञा जी!
Comment by Vinita Shukla on June 13, 2013 at 3:00pm

कम शब्दों में ही, वास्तविकता का सहज बयान. साधुवाद.

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