For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चांद सितारे

चुप से हैं।

रात

घनेरी छाई है।।

 

तेज घनी

दुपहरिया में

अब अंगार बरसते हैं।

तपती

बंजर धरती पर

पांव धरें

तो जलते हैं।

पेड़ की

टूटी शाख पर

इक कोंपल

मुरझाई है।।

 

चिटक गयीं

दीवारे भी

छत से

बूंद टपकती है।

जमीं

सहेजी थी मैंने

मुझसे

दूर खिसकती है।

नयनों की

परतें सूखी

दिल में

सीलन छाई है।।

 

देखो

अब आशाओं के

पंख झड़े

तन सूख गए।

कितने कितने

सपनों के

श्वास से

संग छूट गए।

बस

टूटा बिखरा सा ये

जीवन

इक भरपाई है।।

          - बृजेश नीरज

 

(मौलिक व अप्रकाषित)

Views: 897

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on May 14, 2013 at 8:16pm

आदरणीय राजेश जी आपका बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on May 14, 2013 at 8:14pm

आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on May 14, 2013 at 8:13pm

आदरणीया कुन्ती जी आपका आभार!

Comment by vijay nikore on May 14, 2013 at 5:59pm

आदरणीय बृजेश जी:

 

सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on May 14, 2013 at 3:58pm

आदरणीय भाई नीरज जी हार्दिक बधाई इस सुन्दर नवगीत के लिए \\\\सादर  

Comment by राजेश 'मृदु' on May 14, 2013 at 3:24pm

इस सुंदर नवगीत पर हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें, सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2013 at 1:35pm

देखो

अब आशाओं के

पंख झड़े

तन सूख गए।

कितने कितने

सपनों के

श्वास से

संग छूट गए।

बस

टूटा बिखरा सा ये

जीवन

इक भरपाई है।।

 सुन्दर भाव 

सुन्दर नव गीत 

सस्नेह बधाई , अनुज श्री जी 

Comment by coontee mukerji on May 14, 2013 at 11:05am

देखो

अब आशाओं के

पंख झड़े

तन सूख गए।

कितने कितने

सपनों के

श्वास से

संग छूट गए।

बस

टूटा बिखरा सा ये

जीवन

इक भरपाई है।..........जीवन की  अंतिम तस्वीर ! इंसान के पास और क्या रह जाता है ,श्वास से संग टूट जाता है . ...जीवनदर्शन. अति सुंदर नीरज जी . / सादर / कुंती .

Comment by बृजेश नीरज on May 13, 2013 at 11:38pm

आदरणीया सीमा जी
मैं उस्ताद तो नहीं बस आप लोगों से सीख रहा हूं।
आपने जो सुझाव दिए हैं वो उचित ही हैं। एक को मैंने इक लिखा था लेकिन शायद टाइप करते समय मुझसे गलती हो गयी।
श्वासों उचित ही है लेकिन मात्रा बराबर रखने के लिए श्वास किया था।
आपने जो हिम्मत बंधायी है उसके लिए हार्दिक आभार!
सादर!

Comment by seema agrawal on May 13, 2013 at 11:09pm

वाह आप तो उस्ताद हैं बृजेश जी बहुत सधा हुआ भावो से भरा नवगीत ....कष्ट के क्षणों को बहुत करीने से संयत शब्दों में बांधा गया है इस बंद में 

पेड़ की
टूटी शाख पर
एक कोंपल
मुरझाई है।।//को इक  कर दिया जाये तो ?

नयनों की

परतें सूखी
दिल में
सीलन छाई है....वाह विरोधाभास  को खूबसूरती से शब्द दिए हैं 

देखो
अब आशाओं के
पंख झड़े
तन सूख गए।.......वाह सुन्दर बिम्ब 

कितने कितने
सपनों के
श्वास से
संग छूट गए।/// श्वास  को श्वासों करके पढ़ कर देखिएगा 

बस
टूटा बिखरा सा ये
जीवन
इक भरपाई है।।.................निराशा की पराकाष्ठा को इंगित करती ये पंक्तियाँ भाव  व्यक्त करने में सफल रही हैं 

कुल मिला कर एक सफल नवगीत 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service