For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरु नदिया पछताय ( कुछ दोहे )

नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |

उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||

नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |

मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||

क्षुधा तृप्त करता सदा, नद जल सुधा समान |

व्यर्थ खरचता रातदिन, यह पापी इंसान ||

 

सरि तल बालू देखती, अब सीधे आकाश |

चकाचौंध ने कर दिया, सरिता का ही नाश ||

धार बहे अब अश्क सी, नदिया रुदन छुपाय |

विकसित नद से सभ्यता, अरु नदिया पछताय ||

नदिया पर भी चढ़ गए, लोगों के निज धाम |

खुद ही दावत मौत को, भल करे सियाराम ||

प्रदुषित जल विस्तार से, फैले कितने रोग |

सरकारें मदमस्त हैं, भोगें निर्धन लोग ||

पवित्र नदियों में सभी, बहता प्रदुषित नीर |

सरकारें खामोश हैं, जन-जन उठती पीर ||

जन-जन ही अब ध्यान दे, तब ही पाए नीर |

भागीरथी प्रयास हों, आए मन तब  धीर ||

 

Views: 1056

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 8, 2015 at 11:14am

आज इन  दोहों को पुनः अवलोकन कर ख़ुशी  हुई  | नदियों के नीर पर बहुत  ही  सुंदर  और भावूर्ण दोहें रचे है जो संग्रहनीय बन पड़े है | ऐसे में निम्न  दो  दोहों में तमात्राओं की त्रुटियाँ सुधरा जाना आवश्क है आदरणीय -

1.प्रदुषित जल विस्तार से, फैले कितने रोग |--बढे प्रदूषित नीर से,फैल रहे है रोग,

 

2.पवित्र नदियों में सभी,बहता प्रदुषित नीर |-पावन नदियों में बहे, खूब प्रदूषित नीर 

सादर 

Comment by kanta roy on October 8, 2015 at 8:51am
देश की जीवन रेखा नदियों की यह दास्तान पढकर मन विह्वल हो उठा । बेहद संवेदनशील पंक्तियों से आपने नदियों की दोहन और अवमानना की शब्दों में जैसे बेहद उच्च स्वर दिया है । कलपती हुई ,तरसती हुई नदियाँ विलुप्तता की कगार में पहुँच चुकी है । बढती हुई जनसंख्या नें भराव को अंजाम देते हुए अपने पेट और छत का इंतजाम तो कर लिये लेकिन हमारा सिर्फ हमारे अपने लिये ही जीना इस सोच ने देश की पर्यावरण और सांस्कृतिक रूप का हाल कितना बदहाल कर दिया है कि हम आज ये विवश है कहने को कि

धार बहे अब अश्क सी, नदिया रुदन छुपाय |
विकसित नद से सभ्यता, अरु नदिया पछताय ||
नदिया पर भी चढ़ गए, लोगों के निज धाम |
खुद ही दावत मौत को, भल करे सियाराम ||
प्रदुषित जल विस्तार से, फैले कितने रोग |
सरकारें मदमस्त हैं, भोगें निर्धन लोग ||------ इस रचना के प्रत्येक पंक्ति में गम्भीर चिंतन है । सचेत करती हुई इस सार्थक रचनाकर्म के लिये हृदयतल से आपको बधाई आदरणीय अशोक रक्ताले साहब जी ।
Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2013 at 9:09am

एक एक दोहा सार्थक संदेश देता हुआ, हार्दिक बधाई अशोक जी...सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 3, 2013 at 8:58am

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, मंच पर सदैव आप से और सभी वरिष्ठजनो  के अपेक्षित सहयोग के कारण मैं निःसंकोच छन्दों को सुघड़ करने के लिए प्रयासरत रहना अच्छा लगता है.आपका  और सभी वरिष्ठजनो का बहुत बहुत आभार.

 जी.... आदरेया डॉ. प्राची जी द्वारा दिए सुझाव अमूल्य है. भल करें सियाराम, को भली करें सियराम बिलकुल उचित हैं मैं सुधार कर लेता हूँ.सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 3, 2013 at 8:49am

आदरणीया शालिनी रस्तोगी जी सादर, दोहों के भाव को समयानुकूल और प्रभावशाली मानने के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 3, 2013 at 8:43am

सादर आभार गीतिका जी, अवश्य पवित्र पावन होना चाहिए. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 1:19am

आदरणीय अशोकजी, आपकी प्रस्तुतियाँ आपकी सतत लगन का परिचायक हैं .. .

बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें इस अत्यंत प्रासंगिक छंद रचना पर. 

आदरणीया प्राचीजी के सुझाव बड़े सटीक हैं.

भल करे सियाराम  को यदि भले करें सियराम किया जाय तो गेयता का निर्वहन बेहतर होता है.

Comment by shalini rastogi on May 2, 2013 at 11:34pm

वाह अशोक जी ...प्रत्येक दोहा जनचेतना जाग्रत करने वाला है.... आज के समय की माँग को और संबल प्रदान करते प्रभावशाली दोहे ... बहुत बहुत बधाई!

Comment by वेदिका on May 2, 2013 at 11:33pm

बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे ..
आदरणीया राजेश कुमारी जी के कथनानुसार पवित्र के स्थान पर पावन शब्द का प्रयोग जगण विकार को हटा देगा
शुभकामनायें

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 1, 2013 at 11:14pm

आदरेया डॉ. प्राची जी सादर, मुझे लगा था प्रदूषण में मात्रा बड़ी है और प्रदुषित में छोटी इस कारण मैंने प्रदूषित को प्रदुषित लिख दिया है. अवश्य ही इस पर आगे ध्यान रखूंगा. जगण से बचने के लिए कुछ विशेष प्रयास की आवश्यकता है. रचना के भाव सराहने के लिए आपका सादर आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service