For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर तुम्हारी याद में 
इक पीर की माला बनायी ...

रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...

एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....

                  योगेश्वर 'राग'

Views: 759

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by योगेश्वर 'राग' on June 5, 2013 at 5:19pm

आदरणीय सौरव जी, 

        कृपा  बनाये रखिये एक बार फिर आप सभी गुनी लोगो का आभार। कृपया स्नेह बनाये रखिये. 
         धन्यवाद । 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 1:26am

गुणीजनों ने जिस तरह से आपकी रचना पर अपने भाव दिये हैं, सुधार बताये हैं कि उससे हर नव-हस्ताक्षर को रक्स होगा. 

आप उन परध्यान दें.

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.. .

Comment by योगेश्वर 'राग' on April 26, 2013 at 9:14pm

उत्साह को बनाया आपने आदरणीय गणेश जी बागी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
 आदरनीय अशोक कुमार रक्ताले जी   आपने कविता में भावुकता को सराहा आपका बहुत बहुत आभार

Comment by योगेश्वर 'राग' on April 26, 2013 at 9:11pm

आपने तो सारे बिखराव को बहुत प्रेम से समेत दिया ,आपका धन्यवाद आदरणीया डॉक्टर प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 26, 2013 at 9:58am

आ० योगेश्वर जी 

बहुत सुन्दर भावप्रवण गीत लिखा है आपने.. प्रिय के विरह की वेदना में भी मिठास को ही पाती इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई.

फिर तुम्हारी याद में  .........................प्रिय तुम्हारी याद में इक पीर की माला बनायी 
इक पीर की माला बनायी 

रूठना फिर मनाना 
इक रीत है ..............................रूठना फिर मान जाना रीत है 
हाँ हमारे बीच 
अपनी प्रीत है ........................हाँ! हमारे बीच निश्छल प्रीत है 
इसी पूजा में रहे 
हम मग्न ............................मग्न पूजा में रमी हर श्वांस से आवाज आयी 
तो आवाज आयी 
फिर तुम्हारी याद में..................प्रिय तुम्हारी याद में इक पीर की माला बनायी 

यदि इस तरह से कहा जाता तो..... कैसा रहता? अपने मत से अवगत कराइएगा 

शुभकामनाएं  

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 7:18am

याद की भावुकता को बयान करती सुन्दर रचना आदरणीय योगेश्वर जी. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2013 at 8:36pm

//एक अद्भुत 
अलौकिक संगीत है 
हाँ तुम्हारी याद 
मेरी मीत है//

वाह वाह, एक ससक्त रचना हुई है , बधाई स्वीकार हो । 

Comment by वेदिका on April 25, 2013 at 7:30pm

वाह बहुत खूब योगेश्वर राग जी! आदरणीय बृजेश जी सच कह रहे है,   आपने तो सचमुच कवित्त से सुन्दर व्याख्या कर दी है
आप लिखतें रहे और प्रतिक्रियाओं पर गौर करतें रहे ...स्वमेव सुधार आएगा ....यह मंच हमारा और आपका ही है ...बहुत सारी शुभकामनायें ...लेखन जारी रक्खें ...
सादर गीतिका 'वेदिका'

Comment by बृजेश नीरज on April 25, 2013 at 7:25pm

योगेश्वर भाई हम सब यहां सीखने की प्रक्रिया में ही हैं। एक दूसरे की कमियां बताते हुए साथ में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं इसलिए ओबीओ पर रहते हुए आप निश्चित ही बहुत ऊचाइयों को प्राप्त करेंगे। आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on April 25, 2013 at 6:54pm

योगेश्वर भाई जी आपने रचना की जो व्याख्या दी है वह अत्यधिक सुन्दर है। आप यूं समझें कि आपकी रचना से अधिक सुन्दर है। जितनी स्पष्टता और मधुरता आपकी व्याख्या में भरी है वह कविता में नजर नहीं आती। कविता में आपके भाव पूरी तरह उभर कर नहीं आ पाए हैं।
यह कविता संशोधन चाहती है। पाठक को यह कैसे स्पष्ट होगा कि आप किसकी आवाज सुन रहे हैं या पूजा कर रहे हैं। बिम्बों का प्रयोग कविता में होता है लेकिन वे बिम्ब किसी तारतम्य में होते हैं।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service