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आज फिर उसका मन व्यथित था
हाहाकार कर रहा था हृदय
एक कथित पुरुष में
हैवान साकार हुआ था फिर.. 
फिर हैवानियत जीत गई थी 
नरपिशाच के पंजों में
आ गई थी 
फिर एक नन्ही /मासूम सी 
गुड़िया 
आज फिर उसने
अख़बार छिपाया.. 
टीवी के केबल 
निकाल दिये..
उसके भी घर मे  
एक गुड़िया है 
उससे आँख जो मिलानी है..!

आख़िर वह भी तो
एक मर्द है....
"मौलिक व अप्रकाशित" 
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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 5, 2013 at 6:22pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोरे जी ।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 1:06pm

आज फिर उसने

अख़बार छिपाया.. 
टीवी के केबल 
निकाल दिये..
उसके भी घर मे  
एक गुड़िया है 
उससे आँख जो मिलानी है..!

 जी , सारी बात इन पंक्तियों में कह दी. 

बधाई आदरणीय बाग़ी जी 

सादर 

Comment by Rekha Joshi on April 26, 2013 at 12:26pm

आदरणीय गणेश जी ,सच में मन बहुत व्यथित हो रहा है ,दुःख होता है यह सब देख सुन कर ,दिल हिला  देने वाली रचना ,आभार 

Comment by vijay nikore on April 26, 2013 at 11:39am

आदरणीय गणेश जी:

 

सामयिक भावप्रधान रचना हेतु बधाई

 

विजय निकोर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2013 at 9:20am

आदरणीय सौरभ भईया, इस रचना की उत्पत्ति बहुत ही पीडादायी रही है, कई कई बार हाथ काप गया और मस्तिष्क में आंधी तूफ़ान जगह लेते रहे, आगे क्या कहूँ , आप बिना कहे समझ सकते है, रचना को आपका आशीर्वाद मिला मन आह्लादित है,सादर आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2013 at 9:13am

आदरणीय डॉ खरे साहब, आपकी सराहना उत्साहवर्धन करती है,बहुत बहुत आभार | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2013 at 9:11am

प्रिय अनुज अरुन, रचना आप तक पहुचने में कामयाब हुई यह जान मन हर्षित है, आभार आपका ।  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2013 at 9:10am

प्रिय केवल जी, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2013 at 9:09am

आदरणीया कल्पना रमानी जी, रचना आप तक अपने मूल भाव के साथ पहुँच गयी यह मेरे लिए तोष का विषय है, उत्साहवर्धन एवं सराहना हेतु कोटिश: आभार, स्नेह बनाये रखे ।  

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 25, 2013 at 10:44pm

आदरणीय बाग़ी जी सादर प्रणाम, बहुत ही सुन्दर रचना सीधे दिल को छू रही है.बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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