For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन तुम बार बार

पीछे से बुलाते हो |

एक दिन सोचूंगी मैं  

कि तुम्हारी ओर लौट जाऊं  

तितलियों से आगे 

कागज का जहाज

उडाऊं मैं |

अभी हिम्मत है, हौसला है, जोश है

और जिम्मेदारियों का फैला बोझ है

पत्ता पत्ता हरियाली उपजाऊं मैं

इस जंगल से निकलने का मार्ग न पाऊं मैं

तू ही बता ऐसे में कैसे आऊं मैं|

 

जिस दिन थक कर चूर हो जाउंगी

और इस जंगल के लिए अवांछित  हो जाउंगी

झड चुके सूखे पत्तों में भी ठौर न पाऊंगी

तब जब खुद का बोझा उठा न पाउंगी|

और हरियाले जंगल से निष्काषित कर दी जाउंगी मैं......

उस दिन मेरे साथी मेरे बचपन

तुम पीपल की छाँव तले आना

मुझे अपने गले लगाना

भूल न जाना पुराना पगडंडियों वाला रस्ता

साथ में ले आना स्कूल का बस्ता

माँ के हाथ का टिफ्फिन रोटी खायेंगे   

फिर हम कागज की नाव बहायेंगे

तितलियों के पीछे उड़ते चले जायेंगे  

चन्दा की नगरी में

परियों की बस्ती में

एक बेफिक्र जीवन होगा 

अबकी न बिछडेंगे हम  

बचपन तुझसे मिलने आयेंगे हम ............................. 

Views: 1555

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 9:14pm

बहुत प्यारी रचना है | बधाई स्वीकारें आदरणीया |

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 25, 2013 at 4:26am

@अशोक जी @ सुरेंदर जी... आपका शुक्रिया 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 25, 2013 at 4:25am

धन्यवाद डॉ प्राची सिंह जी... अभी इस पर और कार्य किया जाएगा ..सादर 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 25, 2013 at 4:24am

@बृजेष कुमार जी ! आप का प्रश्न सही है... और जब कोई प्रश्न मन मे जागता है तो उसे पूछ लेना ही बेहतर होता है न कि वह प्रश्न मन के अंदर दम तोड़ ले..

१) कि का प्रयोग मन का अभी भी दो राहे मे खडा होना, उसे भविष्य मे भी स्पष्ट नहीं कि ऐसा हो भी पायेगा कि नहीं...

वैसे कि के बिना भी काम चल सकता है... लेकिन 'कि' अपनी बात पर अतिरिक्त दबाव देता है ... 

२) आखिरी पंक्ति मे 'हम' इसे मैंने पढ़ा और खुद मेरे मन ने ये हम क्यू लिख दिया  .. लेकिन उसे एडिट नहीं कर पायी... इसे अब सही कर दूंगी....

आपका सादर धन्यवाद 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 25, 2013 at 4:08am

raam shiromani pathak ji... dhnyavaad ...

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 11:21pm

तब जब खुद का बोझा उठा न पाउंगी|

और हरियाले जंगल से निष्काषित कर दी जाउंगी मैं......

उस दिन मेरे साथी मेरे बचपन

तुम पीपल की छाँव तले आना

मुझे अपने गले लगाना

आदरणीया डॉ नूतन जी ....
जिन्दगी के अंतिम पड़ाव को दर्शाती और दर्द के साथ वचपन को दुलारती महत्त्व देती कोमल रचना ..वृजेश जी की बात पर भी गौर करियेगा ......जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2013 at 10:08pm

बचपन की मीठी याद दिलाती सुन्दर रचना. बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2013 at 12:36pm

खूबसूरत कोमल भाव..

बचपन के निश्चिन्त पल, एक बार चले जाएँ तो लौट कर नहीं आते..दिल उन्हें बार बार जीना चाहता है, पर जिम्मेदारियों की बेड़ियाँ वापिस लौटने ही नहीं देती.. 

भाव बहुत सुन्दर हैं, पर शिल्प पर अभी और कसावट चाहिए... 

आदरणीय बृजेश जी के कहे से पूर्णतः सहमत हूँ...

शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 10:30pm

बहुत सुन्दर रचना आदरणीया! बचपन जीवन का वह सुखद दौर है जो जीवन में कभी भूले नहीं भूलता। जीवन की सारी आपाधापी, छल कपट के बीच बारबार अपनी ओर बुलाता रहता है। बधाई।

दो बातें कहना चाहता हूं जो मुझे अखरीं। वैसे आप मुझसे अधिक जानकार और प्रतिष्ठित हैं।

पहली बात -

//कि तुम्हारी ओर लौट जाऊं // 

इस पंक्ति का प्रारम्भ ‘कि’ से किया जाना आवश्यक नहीं था।

दूसरी बात कि कविता प्रारम्भ में मैं की बात कर रही थी और अंत तक पहुंचकर हम की बात करने लगी।

//तू ही बता ऐसे में कैसे आऊं मैं//

//बचपन तुझसे मिलने आयेंगे हम// 

 ये क्यों?

आशा है आप इसे कुचेष्टा न समझेंगी और अन्यथा न लेंगी।

सादर!

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 8:43pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया ////////

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service