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क्रांति 

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चिंता छोड़ो सुख से जियो 

पुस्तक हम भी ले आये 

विश्वास रहा न उनके ऊपर

वोट थे जिनको दे आये

पढ़ा लगा मन उसे प्रतिदिन

चिंता दूर न हो पायी 

गयी बेटी सवेरे पढने 

जब तक वापस घर न आयी

कहाँ देखें कहाँ न देखें 

हर पल लगा रहे  अंदेशा 

न जाने  कहाँ  मिल जाएँ 

राक्षस  बदले हुये वेषा

लाख उपाय कर के  देखे

नित बदल बदल कर कानून

धरना प्रदर्शन आन्दोलन 

रोक सका  न बहता खून          

सोच आपकी गलत नही
सोच कर सोच को देखो

जरूरी हुई  नैतिक शिक्षा

मन आवेगों को रोको

सूरज तपना छोड़े न
मयूर न छोड़ता  नर्तन
सैनिक बजाता  बांसुरी
कवि करता अब कीर्तन
बदलेगा समाज कैसे
कैसे शांति अब  आएगी
रामायण गीता भूले सब
सोचो कैसे क्रांति आयेगी

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

२२-४-२०१३ 

मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 620

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 9:06pm

आदरणीय प्रदीप जी सुन्दर प्रस्तुति।हार्दिक बधाई

Comment by वेदिका on April 23, 2013 at 8:40pm

चिंता पिता की निरर्थक तो नही है .....आज किशोरी हो रही बेटी से भी उतनी ही दुश्चिंताए है जितनी की एक छोटी से नवजात बिटिया से .....!
क्या लिखूं आदरणीय प्रदीप जी! बधाई लिखूं या कुछ ऐसा लिखूं की चिंता करना होगा !!!!!!!!!!!!!!!
पता नही .....सादर गीतिका 'वेदिका'

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 7:04pm

आदरणीय प्रदीप जी सादर, बदलते हालातों पर चिंता प्रकट करती सुन्दर रचना.

Comment by vijay nikore on April 23, 2013 at 4:35pm

आदरणीय प्रदीप जी:

 

//जरूरी हुई  नैतिक शिक्षा

मन आवेगों को रोको// ....   भाव अच्छे लगे।

 

इस विषय पर आवाज़ उठाने के लिए धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2013 at 1:03pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ....................
Comment by Savitri Rathore on April 23, 2013 at 12:31pm

समसामयिक रचना .......सुन्दर प्रस्तुति ............हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 12:26pm

सामयिक विसंगतियों और पुत्रियों की सुरक्षा को ले कर व्यथित मन समाज में नैतिक क्रान्ति के बीज खोजता.... इन भावों को अभिव्यक्त करती सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बधाई आ० प्रदीप कुमार कुशवाहा जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 23, 2013 at 10:04am

आ0 कुशवाहा जी,  सादर प्रणाम!  एक गहन विचार पर सुन्दर प्रस्तुति।  सादर बधाई स्वीकार करें।

Comment by coontee mukerji on April 22, 2013 at 9:12pm

आज हर पिता की यही चिंता लगी रहती है कि स्कूल  गयी बेटी सही सलामत वापस  घर आएगी  कि  नहीं .आज  का प्रगतिशील समाज का

आयना . कब बदलेगी विकृत मांसिकता .हर किसी के जबान पा आज यही‌ सवाल है , खुशवाहा जी , सादर  - कुंती .

Comment by Vindu Babu on April 22, 2013 at 7:23pm
सादर अभिनन्दन् आदरणीय...
हर पल लगा रहे अंदेशा
न जाने कहां मिल जाएं
राक्षस बदले हुए वेषा
वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए बहुत ही प्रसंगिक है प्रस्तुति।
सादर बधाई स्वीकारें।

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