हम हैं कौन, हमारी वास्तविक पहचान क्या है, क्या हम महज हाड़ मांस से बने शरीर मात्र हैं या इससे भी अलग हमारी कोई पहचान है।
ये प्रश्न सृष्टि के प्रारंभ से ही मानव मन को उद्वेलित करते रहे हैं। इन प्रश्नों का उत्तर पाने हेतु मानव अध्यात्म के धरातल पर कदम रखता है।
हम सिर्फ शरीर मात्र ही नहीं हैं वरन शरीर से पृथक ही हमारा वास्तविक अस्तित्व है। हम सभी में उस परम शक्ति का वास है। 'आत्मा' ही हमारा वास्तविक स्वरुप है। हम सभी में असीमित क्षमताएं हैं।
छान्दोग्य उपनिषद् का महावाक्य है 'तत् त्वम् असि' इसका अर्थ है तुम वो हो। आखिर इसका क्या अर्थ हुआ। इसका अर्थ है हम वही हैं जिसकी हमें तलाश है।
हम सभी को पूर्णता की खोज है। हम सभी शक्ति, शांति, ज्ञान की अभिलाषा रखते हैं। हम जिन वस्तुओं को बहार तलाशते हैं वे हमारे भीतर ही विद्यमान है। हम अपने आप में सम्पूर्ण हैं। हम परम शक्ति, शांति एवं ज्ञान के भण्डार हैं।
आवश्यकता स्वयं के भीतर झांकने की हम। हम अपने मन की गहराइयों में जितना अधिक उतरेंगे उतना ही अधिक इस सत्य के निकट होंगे।
'तत् त्वम् असि' अद्वैत के सिद्धांत पर आधारित है। जिसके अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि में केवल एक ब्रह्मं तत्व ही विद्यमान है। ब्रह्मं ही एक मात्र सत्य है जो की सभी चल तथा अचल वस्तुओं में समाया है। क्षुद्र कीट से लेकर ब्रह्मज्ञानी सभी के अंतर में वह आत्मा के रूप में स्थित है। माया उसे अज्ञान के आवरण से ढँक देती है और हमारे सामने विविधताओं का संसार प्रस्तुत हो जाता है। हम स्वयं को उस परम शक्ति से पृथक मान कर उसे बाहरी वस्तुओं में खोजने लगते है। जबकि वह हमारे भीतर स्थित है।
जब यह द्वैत का भाव रहता है हम स्वयं को निर्बल समझते हैं। 'तत् त्वम् असि' इस महावाक्य का स्मरण हमें इस द्वैत भाव से मुक्त करने में सहायक होता है। हम अपने भीतर एक असीम शक्ति का अनुभव करते हैं। यह महावाक्य ओजपूर्ण है। विषम से विषम परिस्तिथि में भी यह हमारे भीतर एक उर्जा का संचार करता है। हमें निराश नहीं होने देता है क्योंकि हम जानते हैं की हमारे भीतर वह परम शक्ति विद्यमान है।
स्वयं को असहाय एवं निर्बल न समझें। इस महावाक्य की शक्ति को अपने भीतर महसूस करें। यह उस आत्मविश्वास को जन्म देगा जिसके बल पर आप चुनौतियों के समक्ष स्वयं चुनौती बन कर खड़े होंगे।
Comment
यथार्थ और सत्य से अवगत करता आपका यह आलेख/////////////बहुत सुन्दर./////साधुवाद ।
आशीष त्रिवेदी जी आपने आत्मविश्वास का मूल मन्त्र देकर इस आलेख को बहुमूल्य बना दिया है बहुत अच्छा लिखा है बहुत- बहुत बधाई आपको |
आदरणीय आशीष जी सादर, सर्वप्रथम तो क्षमा चाहूँगा आपने मुझे किसी चर्चा में शामिल करना चाहा था किन्तु मैं व्यस्तता के चलते उसमे शामिल न हो सका.
आपका यह आलेख भी बहुत ही उम्दा है स्व को समझने को प्रेरित करता है. बिलकुल सही है तभी हम कहते भी हैं हम भगवान को मंदिर मंदिर खोजते फिरते हैं किन्तु वह तो हमारे अन्दर ही है. बहुत सुन्दर.
आदरणीय त्रिवेदी जी, सादर प्रणाम! बहुत सुन्दर। महामना विवेकानन्दजी के चित्र ने भावों को और भी गंभीरता दिया है। सादर बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय त्रिवेदी जी बहुत संबल देते सकारात्मक विचारों का आलेख पढ़ मन आत्मविश्वास से भर गया हार्दिक साधुवाद । ऐसे मार्गदर्शक विचार समय की मांग हैं !
आपके विचारों का स्वागत है। चाहें भौतिक स्तर पर हो या आध्यात्मिक हम में बहुत समानताएं हैं किन्तु इसे न समझ पाना ही परेशानी का कारण है।
आदरणीय आशीष कुमार जी, सादर अभिवादन!
इन विषयों में मैं बहुत बड़ा अज्ञानी हूँ. सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि अगर सभी जीवों में एक ही आत्मा जो कि परमातम का ही अंश है तो इतना हाहाकार क्यों मचा हुआ है? एक जीव (आत्मा) दूसरे जीव (आत्मा) को समाप्त करने में क्यों लगी है? माया साफ़ दिखलाई देती है आत्मा को किसने देखा है और जिसने देखा है वे आज कहाँ हैं?... बस मेरी यही प्रतिक्रिया है या समझ लें मेरी अज्ञानता ही है... आपक आभार ..इन गंभीर विषयों को प्रस्तुत करने के लिए!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online