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एक नन्हीं प्यारी चिड़िया...गजल

गजल...        

 

एक नन्हीं प्यारी चिड़िया, आज देखी बाग में।

चोंच से चूज़े को भोजन, कण चुगाती बाग में।

 

काँप जाती थी वो थर-थर, होती जब आहट कोई,

झाड़ियों के झुंड में, खुद को छिपाती बाग में।

 

ढूंढती दाना कभी, पानी कभी, तिनका कभी,

एक तरु पर नीड़ अपना, बुन रही थी बाग में।

 

खेलते बालक भी थे, हैरान उसको देखकर,

आज ही उनको दिखी थी, वो फुदकती बाग में।

 

नस्ल उसकी देश से अब, लुप्त होती जा रही,

बनके रह जाएगी वो, केवल  कहानी बाग में।

 

है नियत उसके लिए अब, एक दिन हर साल का,

ढूँढने आएँगे जब, उसकी निशानी बाग में।

 

जाग रे इंसान, यूँ खोने न दो इस जीव को,

क्या हुआ फिर शोध हों, वो कब दिखी थी बाग में।

 

मौलिक व अप्रकाशित

---कल्पना रामानी

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Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2013 at 6:52pm

बहुत  बहुत धन्यवाद, प्रदीप जी

सादर  

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:51pm

बहुत सही चेतावनी दी है महोदया जी 

ढूँढ़ते रह जाओगे 

सादर बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 18, 2013 at 7:56am

नस्ल उसकी देश से अब, लुप्त होती जा रही,

बनके रह जाएगी वो, केवल  कहानी बाग में।.................बिलकुल सटीक.

आदरणीया इस सुन्दर गजल पर बहुत बहुत दाद कुबुलें.

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:24pm

आदरणीया कल्पना जी आपने बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है //बचपन की याद ताज़ा हो गयी !!हार्दिक बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 12:05pm

खेलते बालक भी थे, हैरान उसको देखकर,

आज ही उनको दिखी थी, वो फुदकती बाग में।

 

नस्ल उसकी देश से अब, लुप्त होती जा रही,

बनके रह जाएगी वो, केवल  कहानी बाग में।

 

है नियत उसके लिए अब, एक दिन हर साल का,

ढूँढने आएँगे जब, उसकी निशानी बाग में।

सुन्दर अल्फाजों के साथ बहुत सुन्दर भाव हैं  आदरणीय कल्पना जी , आपकी ग़ज़ल में !

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