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आदरणीय मनोज जी सादर, बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है तोटक छंद पर. बहुत बधाई स्वीकारें. लिखते सीखते त्रुटियाँ भी ठीक हो ही जायेंगी. आदरेया राजेश कुमारी जी के कहे से मैं भी सहमत हूँ.
वह भाय निहारत है बहना-----इसमें भ्रात कर सकते हैं
मनोज शुक्ल जी दिल को छू गई ये रचना सबसे बिर वक़्त होता है अपना जुदा होता है एक बाप की मनोदशा का बहुत खूब चित्रण किया है आपने छंद के माध्यम से हार्दिक बधाई
पिता की पीड़ा को मार्मिक शब्दों में सुंदरता से समाहित किया है. बधाई...
.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई, काव्य के जानकार के सुझावों पर गौर करना उचित होगा भाई श्री मनोज शुक्ल जी
आदरणीय मनोज जी इस भाव पूर्ण रचना हेतु बधाई स्वीकारें
तत शिल्प की दृष्टि से आदरणीय विनय भाई से सहमत हूँ
एक बात और छंद छंद होता है
और मुक्तक मुक्तक
छंद आधारित मुक्तक कहे जा सकते हैं
किन्तु फिर उसे मुक्तक ही कहा जायेगा
न की छंद
छंद की दृष्टि से आपकी रचना में बहुत कमियाँ हैं
जिन्हें भाई साहब ने बखूबी इंगित किया है
सादर
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