For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमने चुना

अपने लिए

एक नर्क

या धकेल दिया था तुमने

हमें नर्क में...

कोई फर्क नहीं पड़ता...

 

नर्क

भले ही जैसा था

हमने उसमें बसने का

बना लिया मन

और ठुकरा दिया

तुम्हारे स्वर्ग को

उन लुभावने सपनो को

जिसे दिखलाते रहे तुम

और तुम्हारे दलाल...

 

और जिस स्वर्ग के लालच में

फंसती रहीं

हमारी कई कई पीढियां...

 

धरे रहो तुम अपना स्वर्ग

अपनी तिजौरियों में

हमें छोड़ दो

हमारे हालात पे...

 

हम खोज लेंगे

अपने लिए खुशी के क्षण

गंधाते हुए

बजबजाते हुए

तड़पाते हुए माहौल में भी....

Views: 378

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 3:47pm

अनवर सुहैल जी, आपकी इस रचना पर मैं मुग्ध भी हूँ और आपकी साहित्यिक ताकत का दीवाना भी. आपकी यह रचना इस मंच के लिए कम फख्र की बात नहीं है.

इस रचना के परिप्रेक्ष्य में यह कहना गलत न होगा कि आप जैसा सुधी और मानसिक रूप से इतना प्रखर सदस्य अपना सहयोगी है.

सादर

Comment by बृजेश नीरज on March 29, 2013 at 11:11am

अति सुन्दर!

Comment by coontee mukerji on March 28, 2013 at 10:23pm

अनवर जी , कितनी पीड़ा झलकती है इस रचना में,फ़िरभी कवि का  स्वाभिमानी मन झुकने को तैयार नहीं .अति सुन्दर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 28, 2013 at 8:10pm

जिस विधि राखे , उस विधि रहिये...... हर हाल में खुश 

फिर नर्क से क्या डरना..

जब चारों तरफ नारकीय हालात हों, तो भी उम्मीद की किरण और उस परमशक्ति पर विश्वास जो हमार भीतर ही विद्यमान है ऐसी ही सकारात्मक सोच देती है 

हम खोज लेंगे

अपने लिए खुशी के क्षण

गंधाते हुए

बजबजाते हुए

तड़पाते हुए माहौल में भी....

हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"ग़ज़ल द्वेष हर दिल से मिटा कर के नतीजा देखूँ देश का हाल भला बनता है कैसा देखूँ रास्ता बीच का मजबूत…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब। ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मेरे …"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गिरह भी ख़ूब, हर शेर पे दाद क़ुबूल…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल का प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह भी ख़ूब हुई सादर"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"2122 1122 1122 22 घर से निकलूँ कहीं बाहर जो है दुनिया देखूँ वक़्त के साथ ही ख़ुद को भी मैं चलता…"
9 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आदाब। अच्छी ग़ज़ल हुई । बधाई स्वीकार करें।"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"अपने भारत के लिए मैं यही सपना देखूँ फिर इसे बनते हुए सोने की चिड़िया देखूँ मेरी हसरत है, हो हर आँख…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ
"गज़ब धर्म निभाया, आप ने,आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर,  धामी जी, अनेकानेक बधाईंया !"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"बहुत सुन्दर शास्त्रीय गीत का सृजन हुआ,  भाई,  नाथ सोनाक्ष, बधाई,  आपको, श्री  !"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"मेरे  महबूब  कभी  वो  हसीं  चहरा  देखूँ   दिन भी बन जाए…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service