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शाम आना है सुब्ह जाना है-- ग़ज़ल सलीम रज़ा रीवा

                  || ग़ज़ल ||

शाम आना  है  सुब्ह     जाना है ||

दिल सितारों  से क्या लगाना है ||
 
दिल ये कहता है तुम चले आओ ||
आज  मौसम  बड़ा  सुहाना  है ||
 
उनसे मिलकर  ही मैंने जाना है ||
ज़िन्दगी  का    सफ़र  सुहाना है ||
 
प्यार उल्फत वफ़ा मुहब्बत सब ||
ये तो  जीने  का    इक बहाना है ||
 
सच कहाँ   होती ख़्वाब  की बातें ||
ख़्वाब  होता    मगर  सुहाना है ||
 
ग़म  फ़क़त है नहीं मेरे संग में ||
चंद  खुशिओं का भी  खज़ाना है ||
 
ऐ  ''रज़ा''    हौसला  रहे  कायम ||
चोट  खाकर  भी  मुस्कुराना है  || 
 

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Comment

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Comment by mrs manjari pandey on February 28, 2013 at 11:26pm

शाम आना है सुब्ह  जाना है . दिल सितारों से क्या लगाना है।" आदरणीय साली म राजा जी अच्छा लगा .

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 26, 2013 at 11:53pm

सलीम साहब बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है....दिल के बेहद करीब। ख़ास कर ये शेर तो बहुत उम्दा है॥

सच कहाँ होती ख़्वाब की बातें 
ख़्वाब होता मगर सुहाना है ...

दिली दाद कुबूल करें !

Comment by SALIM RAZA REWA on February 26, 2013 at 4:21pm

नादिर ख़ान JI bahut bahut shukriya

Comment by नादिर ख़ान on February 26, 2013 at 4:14pm

शाम आना है सुब्ह जाना है 
दिल सितारों से क्या लगाना है 

उनसे मिलकर ही मैंने जाना है 
ज़िन्दगी का सफ़र सुहाना है 

प्यार उल्फत वफ़ा मुहब्बत सब 
ये तो जीने का इक बहाना है 

सच कहाँ होती ख़्वाब की बातें 
ख़्वाब होता मगर सुहाना है 

क्या कहने सलीम जी,

उम्दा गज़ल के लिए बधाई सभी शेर एक से बढ़कर एक

बहुत खूब...

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