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तुम

मैं महसूस करता हूँ

जब भी

अंदर तक बिखरा

तुम्हारे कदमों की आहट

फिर से समेट देती है

मेरा अंर्तमन

चेतनशून्य से

चैतन्यता लौट आती है

मेरे पास

तुम्हारा मुस्कराता चेहरा

मेरी आंखों के सामने होता है

                      - बृजेश नीरज

 

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Comment by बृजेश नीरज on February 20, 2013 at 5:45pm

 Ashok Kumar Raktale ji,  आपका आभार! 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 11:31pm

सुन्दर रचना आदरणीय ब्रजेश नीरज जी बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on February 19, 2013 at 9:48pm

अरूण जी व सलिल जी, सादर आभार!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 8:27pm

तुम्हारे कदमों की आहट
फिर से समेट देती है
मेरा अंर्तमन

बहुत सुन्दर..... 

Comment by Arun Sri on February 19, 2013 at 6:17pm

कुछ लोग होते ही ऐसे हैं ! दुर्बल क्षणों में सहारे की तरह ! सुन्दर भाव है रचना के !

Comment by बृजेश नीरज on February 19, 2013 at 6:13pm

आप सबका बहुत आभार!

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के प्रश्न का उत्तर जहां तक मैं समझता हूं-

चेतनता
संज्ञा स्त्री० [सं०] चेतन का धर्म । चैतन्य । सज्ञानता ।

चैतन्यता
संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'चेतनता' 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 19, 2013 at 3:42pm

उद्विग्न मन की चैतन्यता को जोहती रचना के लिए बधाई.. .

चैतन्यता और चेतनता के मध्य क्या अंतर है ?

शुभं

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 19, 2013 at 2:06pm

यादे अहसास करा अंतर्मन को झकझोर देती है 

संक्षिप्त में सब कुछ बयां कर दिया,हार्दिक बधाई 
Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:13pm

बहुत सुन्दर .. बधाई आदरणीय ब्रजेश जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 19, 2013 at 12:50pm

वाह वाह
सच है कुछ यादें इतनी हसीन होती है जो जीने के लिए उत्परेरक का कार्य करती हैं
बधाई हो सुंदर कम शब्दों मे अच्छी अभिव्यक्ति के लिए

कृपया ध्यान दे...

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