For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम ढोते हैं अपनी विरासत को

हम ढोते हैं अपनी विरासत को
सभ्यता को
संस्कृति को
शाश्वत दर्शन को
बिना जाने
बिना समझे 
जीवन में उतारे बिना
हम पूजते हैं
अपने मूल्यों को
बिना समझे
बिना जाने
भटकते हैं
रौशनी के काफिले
हमें गर्व है
अपनी थाती पर
वेदों पर
पुराणों पर
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा
के अवशेषों पर 

कटकर
अपनी जड़ों से-

कैसा

माटी का गुणगान ?
अध्यात्म की वृहद चर्चाओं में
कथित 'बाबाओं' की सभाओं में
खेली- खाई 'नैतिकता'
के छलावों में 
हम ढोते  
हैं आत्मा का बोझ 
 यह  कैसा
राष्ट्रीय चरित्र?
कि हम ढोते हैं ...
महज ढोते ही हैं -
अपनी विरासत को !!!


Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 11:37am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी.

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 9:20am

आदरणीया विनीता जी:

 

रचना अच्छी लगी।

बधाई।

 

विजय निकोर

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 9:06am

उत्साहवर्धन एवं सराहना के लिए कोटिशः  धन्यवाद वेदिका जी.

Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 12:58am

हम निजी जीवन में सिद्ध भी नही क्र पते झूठ और सच के भेद, और जानबूझ के मृत परम्पराओं के बोझ भी उठते जाते है । और जीवन कट जाता है इसी तरह।

प्रभावोत्पादक रचना ! 

Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 12:54am

कथित 'बाबाओं' की सभाओं में
खेली- खाई 'नैतिकता'
के छलावों में
हम ढोते
हैं आत्मा का बोझ

स्तरीय तरीके से व्याख्या की गयी है ।

शुभकामनायें.

Comment by Vinita Shukla on February 18, 2013 at 10:39pm

सुन्दर शब्दों में सराहना हेतु, अनेकानेक धन्यवाद संदीप जी.

Comment by Vinita Shukla on February 18, 2013 at 10:38pm

 प्रशंसा हेतु, हार्दिक धन्यवाद रेखा जी.

Comment by Vinita Shukla on February 18, 2013 at 10:37pm

आदरणीय सौरभ जी, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 18, 2013 at 7:56pm

वाह वाह सुन्दर रचना के लिए बधाई आपको

और गुरुदेव आपकी प्रतिक्रिया इस रचना में चार चाँद लगा गयी

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये जय ओ बी  ओ

Comment by Rekha Joshi on February 18, 2013 at 7:56pm

 यह  कैसा
राष्ट्रीय चरित्र?
कि हम ढोते हैं ...
महज ढोते ही हैं -
अपनी विरासत को !!!,सुंदर रचना विनीता  जी ,बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
16 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
18 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
18 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service