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शब्‍द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरी देह,
बड़ी मोहक है
अपनी उपत्‍यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?
देखो न,
तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्‍हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्‍छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्‍हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।

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Comment

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Comment by SUMAN MISHRA on January 24, 2013 at 2:56pm

हर पंक्ति यादों के पुष्प सी सुवासित वर्तमान में लाने की ललक --से परिपूरित शब्द,,,बहुत सुंदर श्री  राजेश जी //

Comment by Yogi Saraswat on January 24, 2013 at 2:54pm

तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्‍हारी लाजवंती की साख

बहुत खूब ! सुन्दर शब्द ! क्या बात है

Comment by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 2:39pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार, आपने जो त्रुटि बताई है वह अनजाने में हो गई, क्षमा चाहता हूं, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 24, 2013 at 9:57am

शब्‍द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरा देह,
बड़ा मोहक है
अपनी उपत्‍यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?----वाह क्या बात कही दिल में समा  गई पंक्तियाँ --बस देह क्यूंकि स्त्री लिंग है तो यहाँ थोड़ी गड़बड़ी लग रही है तेरी देह होनी चाहिए 

जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्‍छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्‍हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।------लाजबाब ,लाजबाब  बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति हेतु 

 

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