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हर किसी को गम यहां पर (राजेश कुमार झा)

हर किसी को ग़म यहां पर
और तो ना दीजिए
हो सके तो मुस्‍कुराते
कारवां रच दीजिए

आ गई जो रात काली
तो नया है क्‍या हुआ
ये तो है किस्‍सा पुराना
राख इसपर दीजिए

लिख रहा जो लाल केंचुल
चीखते मज़हब नए
पोखराजी लेखनी ले
आप भी चल दीजिए

देखना क्‍या ये तमाशे
चार दिन का जब सफ़र
हर लहर को बस किनारे
का पता दे दीजिए

द़श्‍त सहरा खून पानी
लिख चुके कमसिन गज़ल
कुछ तराने अब ख़ुदा के
नाम भी कर दीजिए

दर्द के प्‍याले छुपाकर
कह रहे क्‍यों तक़लिया
बेअदब क्‍यों हो रहे जी
घूंट भर तो दीजिए

(मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on January 19, 2013 at 5:30pm

आदरणीय बागी जी एवं राम शिरोमणि जी रचना का संज्ञान लेने के लिए बहुत आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 19, 2013 at 3:23pm

//लिख रहा जो लाल केंचुल
चीखते मज़हब नए
पोखराजी लेखनी ले
आप भी चल दीजिए//

क्या बात है भाई , बहुत सुन्दर सम्प्रेषण , बधाई स्वीकार करें भाई राजेश झा जी ।

Comment by ram shiromani pathak on January 18, 2013 at 7:40pm

दर्द के प्‍याले छुपाकर
कह रहे क्‍यों तक़लिया
बेअदब क्‍यों हो रहे जी
घूंट भर तो दीजिए

देखना क्‍या ये तमाशे
चार दिन का जब सफ़र
हर लहर को बस किनारे
का पता दे दीजिए

देखना क्‍या ये तमाशे
चार दिन का जब सफ़र
हर लहर को बस किनारे
का पता दे दीजिए

उत्तम अति उत्तम महोदय ,वाह वाह क्या बात है

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