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खरामा - खरामा चली जिंदगी,

खरामा - खरामा घुटन बेबसी,

भरी रात दिन है नमी आँख में,

खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,

अचानक से मेरा गया बाकपन,

खरामा - खरामा गई सादगी,

शरम का ख़तम दौर हो सा गया,

खरामा - खरामा मची गन्दगी,

जमाना भलाई का गुम हो गया,

खरामा - खरामा बुरा आदमी,

जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,

खरामा - खरामा जहर सी लगी.....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Priya Ranjan on January 22, 2013 at 3:51pm

बढ़िया है जी.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 21, 2013 at 5:04pm

ह्रदय से आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी.. आशीष बनाए रखें. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2013 at 4:58pm

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है प्रिय अरुण दाद कबूलें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 1:54pm

आदरणीय भ्राताश्री प्रणाम, बेहद प्रसन्नता हुई की आपने अपना बहुमूल्य समय दिया मैं धन्य हुआ, यूँ ही अनुज पर स्नेह बनाये रखें हार्दिक आभार सादर.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on January 20, 2013 at 1:47pm

//शरम का ख़तम दौर हो सा गया,

खरामा - खरामा मची गन्दगी,//

अरुण शर्मा 'अनंत' जी,

दिल से निकले शानदार अशआर के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें |

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 1:35pm

आदरणीय श्री बागी सर आपके दिल से निकली वाह वाह मेरे दिल को छू कर दिल में घर कर गई, आपका स्नेह अच्छा और अच्छा लिखने को अग्रसर करता है. आशीष का हाँथ रखे रखें सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 19, 2013 at 3:11pm

//शरम का ख़तम दौर हो सा गया,

खरामा - खरामा मची गन्दगी,//

बहुत खूब भाई , वाह वाह , यही दिल से निकल रहा है , बहुत ही उम्दा ख्याल है , अच्छी ग़ज़ल कही है दाद कुबूल करें ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 5:42pm

माफ़ कीजिये सर परेशान कर रहा हूँ, राखी भी गलत है ये रखी है कृपया बदल दें. सादर

Comment by Admin on January 18, 2013 at 5:40pm

आदरणीय अरुन जी प्रणाम, इस रचना में गम की जगह गुम कर दिया गया ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 5:32pm

आदरणीय एडमिन महोदय प्रणाम, इस रचना में कृपया गम की जगह गुम कर दें. सादर

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