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ग़ज़ल : बरगदों से जियादा घना कौन है?

बहर : २१२ २१२ २१२ २१२

बरगदों से जियादा घना कौन है

किंतु इनके तले उग सका कौन है

 

मीन का तड़फड़ाना सभी देखते

झील का काँपना देखता कौन है

 

घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ

छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है

 

लाख हारा हूँ तब दिल की बेगम मिली

आओ देखूँ के अब हारता कौन है

 

प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने

तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है

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Comment by वीनस केसरी on December 4, 2012 at 2:25am

भाई जी यह तो मंच और माहौल की गरिमा है कि खुल कर कुछ कह सुन लेता हूँ और आपकी मुहब्बत है कि आप कहे पर विचार कर लेते हैं नहीं तो ऐसे मंच भी है जहाँ मुझ जैसे कईयों के कहे का दम वाहवाहियों के बोझ तले घुट कर रह जाता है 

स्नेह बनाए रखें ....
सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:25pm

डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:25pm

Saurabh Pandey जी, बहुत बहुत शुक्रिया।

निरंतर स्नेहाकांक्षी।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:24pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया। स्नेह बनाए रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:24pm

वीनस केसरी जी, धन्यवाद साहब।

आप ठीक कह रहे हैं आखिरी शे’र स्पष्ट नहीं है और मेरी ये व्यक्तिगत राय है कि अगर शे’र का अर्थ शाइर को ही समझाना पड़े तो वो शे’र नहीं कूड़ा है। आखिरी शे’र कारखाने में ले जा रहा हूँ। आपकी बेबाक राय से आपके हम जैसे मित्रों को बहुत फायदा होता है। स्नेह बनाए रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:20pm

arun kumar nigam जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 3, 2012 at 11:20pm

 UMASHANKER MISHRA जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 8:28pm

धर्मेंद्र भाई नमस्कार !

बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। खास कर मतला तो बहुत बहुत जानदार है...इस मतले पे कुर्बान जाऊँ॥

बरगदों से जियादा घना कौन है।

किंतु इनके तले उग सका कौन है॥

वाह भाई वाह....ढेरो दाद हाजिर है ...मासाल्लाह !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 3, 2012 at 7:06pm

बधाई-बधाई-बधाई.. .

प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने
तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है 

आय-हाय-हाय.. हर तरह से उम्दा शेर !  भाव एवं कहन से भी और सीखने के लिहाज से भी.  बधाई.. .

आखिरी शेर पर विद्वद्जन कुछ कह रहे हैं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 3:34pm

मीन का तड़फड़ाना सभी देखते

झील का काँपना देखता कौन है

 

घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ

छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है-----   धर्मेन्द्र जी ये दोनों शेर तो हासिले ग़ज़ल हैं जितनी तारीफ की जाए कम है पर मुझे भी सच में अंतिम शेर ने उलझा दिया आप यह कहना चाह रहे हैं की यदि कोई अर्थात लड़की या बहन मेरी कलाई जोर से पकड़ ले तो देखता हूँ की बहन का गला कौन घोंट सकता है -----बहुत ही उत्तम दर्जे का शेर बन रहा है बस कुछ स्पष्टता  मांगता है----मेरा सुझाव ---कोई बांधे अगर डोर इस हाथ पे ,देखूं उसका गला घोंटता कौन है ----ठीक लगे तो ------दिली दाद कबूल कीजिये इस ग़ज़ल के लिए 

 

 

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